
भारत स्टार्टअप समिट 2025 में एक विशेष पैनल “Building the Powerhouse: Accelerating Battery Manufacturing in India” में भारत में बैटरी निर्माण को बढ़ावा देने के उपायों पर चर्चा की गई। पैनल में गुजरात की भूमिका को ACC निवेशों के हब के रूप में, राज्य द्वारा प्रदान किए जा रहे सपोर्ट, सप्लाई चेन तक आसान पहुँच, BMS और रीसाइक्लिंग में उभरते स्टार्टअप्स, तथा सोलर और ग्रामीण स्टोरेज से जुड़े इकोसिस्टम के लिंकिंग के महत्व पर विशेष ध्यान दिया गया।
पैनल में यह भी रेखांकित किया गया कि गुजरात न केवल निवेशकों के लिए आकर्षक डेस्टिनेशन बन रहा है, बल्कि यहां के स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम ने भारत में बैटरी मैन्युफैक्चरिंग को अगले स्तर पर ले जाने में अहम योगदान दिया है। इस पैनल को आईआईटी के एसिसटेंट प्रोफेसर विकास निमेष ने मॉडरेट करते हुए कहा जैसा कि आप जानते हैं, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) न सिर्फ हवा को साफ करने में मदद कर रहे हैं, बल्कि तेल की आयात पर निर्भरता घटाने और नए रोजगार सृजन में भी योगदान दे रहे हैं। ईवी का दिल उसकी बैटरी होती है, जो उसकी लागत, रेंज, चार्जिंग और लाइफटाइम तय करती है।
गुजरात, विशेषकर धोलेरा और सनंद, PLI और राज्य सब्सिडी से समर्थित प्रोजेक्ट्स के साथ इस बदलाव के प्रमुख हब के रूप में उभर रहा है। गुजरात में पोर्ट्स की सुविधा और मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम इसे और भी अलग बनाता है।
अगर हम 2030 तक ईवी का 30% लक्ष्य हासिल कर लें, तो 85% क्रूड ऑइल की आयात घट सकती है और सालाना 60 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है। इसके अलावा, ईवी इकोसिस्टम 10 मिलियन से अधिक नौकरियां भी उत्पन्न कर सकता है।
अब इस पैनल में हम देखेंगे कि नीति, लॉजिस्टिक्स और इनोवेशन कैसे मिलकर भारत में प्रतिस्पर्धी बैटरी इंडस्ट्री बना सकते हैं, जो सिर्फ ईवी नहीं बल्कि सोलर और ग्रामीण स्टोरेज को भी पॉवर दे।
तो आइए, मैं हमारे स्पीकर डॉ. विनोद तिवारी का परिचय देता हूँ। डॉ. विनोद तिवारी, आपने नीति आयोग के रिजनल मेंटर के रूप में और UAE में इंजीनियरिंग डायरेक्टर के रूप में EV और बैटरी इंडस्ट्री में योगदान दिया है। चलिए शुरू करते है बैटरी निर्माण पर चर्चा।
हम जानते हैं कि गुजरात में धोलेरा और सनंद में 40,000 करोड़ से अधिक का निवेश आया है। आपकी नजर में, नीति और तैयारी के लिहाज से गुजरात कितना तैयार है और यह EV इकोसिस्टम को कैसे आगे बढ़ा रहा है?
डॉ. विनोद तिवारी: यह जो आँकड़ा आपने बताया, यह वाकई अच्छा है। लेकिन मैं आपको बताना चाहूँगा कि गुजरात, गुजरात इसलिए नहीं है कि वह केवल गुजरात है; गुजरात इसलिए है क्योंकि यहाँ के लोग इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। किसी भी जगह को अच्छा, बुरा या महान उसके लोग ही बनाते हैं। और मैं यह कहूँगा कि गुजराती लोगों में ग्रोथ माइंडसेट है, फिक्स्ड माइंडसेट नहीं। यही कारण है कि गुजरात पूरे देश में एक अलग पहचान और मुकाम रखता है।
जहाँ तक निवेश की बात है, आपने धोलेरा का जिक्र किया—हाँ, वहाँ बहुत बड़ा निवेश आया है। और हाल ही में एक और बड़ा निवेश आया है ईवी क्षेत्र में, जिसका नाम है eVitara। यह निवेश तब हुआ जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी यहाँ आए और उन्होंने इस परियोजना का उद्घाटन किया।
तो चीजें बड़े स्तर पर आगे बढ़ रही हैं। यह राज्य अपनी क्षमताओं, इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकासशील सोच के साथ पूरी तरह सक्षम है इतिहास रचने के लिए और भारत के ईवी इकोसिस्टम को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए।
हम इंडस्ट्री, R&D और अकादमिक संस्थानों के साथ कैसे सहयोग कर सकते हैं? भारत और गुजरात की पॉलिसी इनोवेटिव टेक कंपनियों और बैटरी तकनीक को आगे बढ़ाने में कितनी मदद कर रही है?
डॉ. विनोद तिवारी: इंडस्ट्री और अकादमिक जगत को जोड़ने के लिए सरकार बहुत गंभीर है और उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ नज़दीकी से काम कर रही है ताकि वे इंडस्ट्री की असली चुनौतियों और समस्याओं को समझ सकें और समाधान खोज सकें। सरकार लगातार दोनों समुदायों—इंडस्ट्री और अकादमिक—को साथ लाने की कोशिश कर रही है।
अगर मैं गुजरात की बात करूँ तो मैंने कई बार IIT गांधीनगर का दौरा किया है, जहाँ हम इंडस्ट्री–अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। इस दिशा में FICCI और कई संगठन तथा राज्य सरकार की एजेंसियाँ भी सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।
जहाँ तक नीति समर्थन की बात है, सरकार ने कई तरह की नीतियाँ बनाई हैं। आपने शायद PLI (Production Linked Incentive) Scheme के बारे में सुना होगा। इस योजना ने काफी असर डाला है। बड़े-बड़े उद्योग समूह, जो भारी निवेश के लिए तैयार हैं, उन्हें इससे बड़ा मोटिवेशन और प्रोत्साहन मिला है ताकि वे इस क्षेत्र में निवेश कर सकें और PLI स्कीम का लाभ उठा सकें।
इसके अलावा भी कई नीतियाँ सरकार के स्तर पर लाई जा रही हैं, लेकिन PLI स्कीम एक प्रमुख पहल है जिसने पूरे भारत में, और खासकर गुजरात में, बैटरी और ईवी क्षेत्र की ग्रोथ को बहुत आगे बढ़ाया है।
अगर आपको बैटरी सेल और कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग को तेजी से बढ़ाने के लिए एक पॉलिसी सुझाव देनी हो तो क्या होगी?
डॉ. विनोद तिवारी: असल में, जो चीज़ उद्योगों, लोगों और निवेशकों को सबसे ज़्यादा चाहिए होती है, वह है स्पष्ट नीति ढांचा (Policy Framework)। जब चीज़ें साफ दिखती हैं और आगे का रोडमैप क्लियर होता है, तो लोग आगे आते हैं और निवेश करने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन जब नीतियां स्पष्ट नहीं होतीं, सरकार का सहयोग और मोटिवेशन नहीं मिलता, तो कई कंपनियां निवेश करने से पीछे हट जाती हैं।
धोलेरा से पहले गिफ्ट सिटी आया था, जिसके बारे में आप जानते ही होंगे। गिफ्ट सिटी बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा और यह सरकार की एक बड़ी पहल थी। अब अगला कदम धोलेरा है, जहां सरकार बड़े निवेशकों—सोलर कंपनियों, सेमीकंडक्टर कंपनियों, ईवी कंपनियों—को आकर्षित करने के लिए ज़ोर लगा रही है। अगर पॉलिसी फ्रेमवर्क, Ease of Operation और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल स्पष्ट और इंडस्ट्री-फ्रेंडली हों, तो कंपनियों के लिए निवेश का फैसला लेना आसान और तेज़ हो जाएगा।”
क्या आप बैटरी सिस्टम को भारत में डिसेंट्रलाइज्ड एनर्जी, खासकर सोलर और ग्रामीण इलाकों के लिए बैकबोन के रूप में देख सकते हैं?
डॉ. विनोद तिवारी: सरकार के पास एक बहुत ही स्पष्ट विज़न है। यह सिर्फ़ किसी सरकार का विज़न नहीं है, न ही किसी राज्य का विज़न, बल्कि पूरे देश का विज़न है। मुझे याद है जब मैं यूएई में था, तब लोग कहा करते थे कि दुनिया का सबसे दूरदर्शी देश सऊदी अरब है, क्योंकि उनके पास 2030 तक का एक बहुत पुराना और मज़बूत रोडमैप था। लेकिन अब पिछले कुछ सालों से जब पूछा जाता है कि दुनिया का सबसे दूरदर्शी देश कौन-सा है, तो जवाब होता है—भारत। क्यों? क्योंकि भारत के पास 2047 और उससे आगे तक का प्लान है।
अभी सरकार सिर्फ़ गोल्स या डेडलाइन्स ही नहीं ला रही है, बल्कि पूरा फ्रेमवर्क और रोडमैप बना रही है। और इसी वजह से, आप विश्वास नहीं करेंगे, नीति आयोग (NITI Aayog) में बहुत बड़ी और अत्यंत योग्य टीम दिन-रात काम कर रही है। इनका मक़सद यही है कि टेक इंडस्ट्रीज़ के लिए ऐसी नीतियाँ और फ्रेमवर्क तैयार हों, जिससे उनका काम आसान हो जाए और उन्हें एक आरामदायक माहौल मिले।”
शहरी क्षेत्रों में तो ट्रांसपोर्ट का विद्युतीकरण तेज़ी से हो रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी चुनौतियाँ हैं। ऐसे में ग्रामीण परिवहन को कैसे विद्युतीकृत किया जाए और EV अपनाने को सस्ता व टिकाऊ बनाने के लिए कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?
डॉ. विनोद तिवारी: शहरी और ग्रामीण, दोनों जगहों के लिए मॉडल प्लान पूरी तरह अलग-अलग हैं। आपने जो पिछला सवाल पूछा था कि नीतियों के स्तर पर क्या बदलाव किए जा सकते हैं, उसका जवाब भी यहीं जुड़ता है।
सबसे बड़ी समस्या है ग्रिड स्थिरता (Grid Stability)। ग्रिड स्थिरता एक बड़ी चुनौती है और यही वजह है कि बैटरी और स्टोरेज इंडस्ट्री की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। यह न सिर्फ ग्रिड को स्थिर करने में मदद करती है बल्कि सप्लाई और डिमांड के संतुलन को भी सही तरीके से बनाए रखती है।
अब अगर मैं शहरी क्षेत्रों की बात करूँ—टियर-1 और टियर-2 शहरों में—तो वहाँ चुनौतियाँ ज़्यादा नहीं रह गई हैं। इसकी वजह है कई सोलर स्कीम्स। आजकल सिर्फ़ इंडस्ट्रियल सोलर नहीं बल्कि रूफटॉप सोलर भी तेज़ी से बढ़ रहा है। हर घर और कई इंडस्ट्रीज़ के पास अपनी स्वतंत्र बिजली व्यवस्था है, जिससे उनकी ग्रिड पर निर्भरता कम हो रही है। यह है शहरी परिदृश्य।
लेकिन अगर ग्रामीण इलाकों की बात करें, तो वहाँ चुनौतियाँ बिल्कुल अलग हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की मानसिकता निवेश को लेकर शहरी इलाकों जैसी नहीं है। वहाँ लोग सोचते हैं—‘क्या मुझे सब्सिडी मिलेगी या नहीं?’—और वे बदलावों को अपनाने में जल्दी तैयार नहीं होते। उनमें हिचकिचाहट रहती है और वे तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक आस-पास के क्षेत्रों में बदलाव होते हुए नज़र न आएं। यही सबसे बड़ी चुनौती है—ग्रिड मॉडिफिकेशन और मानसिकता में बदलाव।
जहाँ तक आपने स्थानीय परिवहन और अन्य चुनौतियों की बात की, तो मैं यह भी बताना चाहूँगा कि गुजरात को मुंद्रा पोर्ट और कांडला पोर्ट का बहुत बड़ा आशीर्वाद मिला है। इन दो बड़े पोर्ट्स ने गुजरात को आसान एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का फायदा दिया है। इसी वजह से गुजरात की गति और विकास दर (Growth) और भी तेज़ और बेहतर हो पाई है। यही गुजरात की सबसे बड़ी ताकत और स्केलेबिलिटी का कारण भी है।
भविष्य में जब बड़ी संख्या में ईवी बैटरियाँ बेकार हो जाएँगी, तो उनका क्या होगा? क्या बैटरी वेस्ट को हम अवसर में बदल सकते हैं और भारत में बैटरी रीसाइक्लिंग का विज़न कैसा होना चाहिए?
डॉ. विनोद तिवारी : यह चुनौती सिर्फ़ बैटरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि सोलर पैनल्स पर भी उतनी ही बड़ी है। दुनिया भर में लोग अब इस पर चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि कुछ वर्षों बाद अरबों टन सोलर पैनल भी डिस्कार्ड होने वाले हैं। यही सवाल बैटरियों के साथ भी है।
मुझे याद है जब मैं दुबई में था, तो एतिसलात (Etisalat) के साथ हमारा बड़ा कॉन्ट्रैक्ट था। वहाँ सिर्फ दो सर्विस प्रोवाइडर्स थे—एतिसलात और डूम। हम सालों तक उन्हें बड़ी संख्या में बैटरियाँ सप्लाई करते रहे। एक दिन उनके सीईओ ने सवाल किया—‘दो साल बाद इन बैटरियों का क्या करोगे? इन्हें कहाँ फेंकोगे? अगर इसका समाधान नहीं है, तो हम सभी वेंडर्स के साथ काम रोक देंगे।’ यानी उन्होंने हमें चेतावनी दी कि इतनी बैटरियाँ हैं, इनका क्या होगा?
अब बैटरी एक ऐसी वस्तु है जिसे यूँ ही फेंका नहीं जा सकता। इसे एक संगठित और व्यवस्थित तरीके से रीसायकल करना ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह वाकई बड़ा कचरा बन जाएगा। लेकिन अगर इसे सही ढंग से रीसायकल किया जाए, तो हम ‘डबल कार्बन’ बचा सकते हैं।
भारत इस दिशा में काम करने वाला एकमात्र देश है, जिसने बैटरियों और सोलर दोनों पर ध्यान देना शुरू किया है। अच्छी बात यह है कि बैटरी टेक्नोलॉजी भी बदल रही है। पहले लंबे समय तक ओवर सेल बैटरियाँ इस्तेमाल होती रहीं, फिर 90 के दशक के अंत में VRLA बैटरियाँ आईं, और अब लिथियम बैटरियाँ चल रही हैं। आने वाले समय में सोडियम आयन बैटरियाँ आएंगी, जो और शक्तिशाली होंगी।
लेकिन हाँ, लिथियम बैटरियों का रीसाइक्लिंग प्रोसेस VRLA से कहीं आसान है। इस दिशा में चीज़ें बेहतर हो रही हैं। भारत ने इस चुनौती पर काम शुरू कर दिया है, और मुझे विश्वास है कि भारत आने वाले 10 साल से पहले ही इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार होगा। यह हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।”
ईवी बैटरियों को रीसायकल या रीपर्पस करने के बाद भी भारत में बैटरी मैन्युफैक्चरिंग को बड़े पैमाने पर बढ़ाने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
डॉ. विनोद तिवारी : सबसे बड़ी चुनौती—या कहें, सबसे बड़ा अंतर—रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) है। भारत में इंडस्ट्री और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों द्वारा R&D में निवेश लगभग नगण्य है, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में नई तकनीक विकसित करने के लिए बहुत पैसा, समय और ऊर्जा लगाई जाती है। भारत अभी भी टेक्नोलॉजी को अपनाने, सहयोग या जॉइंट वेंचर तक ही सीमित है।
आपने सही कहा कि बैटरियों को रीसायकल, रिपर्पजिंग या रीयूज़ किया जा सकता है।
यह नए स्टार्टअप्स के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है। आने वाले वर्षों में यह एक बड़ा बिज़नेस बन जाएगा। केवल अधिकृत कंपनियों को ही इन बैटरियों को रीसायकल और रीपर्पस करने की अनुमति होगी। हालांकि, बैटरी को पूरी तरह से रीयूज़ नहीं किया जा सकता; रीपर्पस कुछ सौ चक्रों तक ही संभव है। नई बैटरी 1800–2000 चक्र चलती है, जबकि रीपर्पस की गई बैटरी को अतिरिक्त लगभग 100 चक्र मिलते हैं। सही रीसायक्लिंग होना जरूरी है और यह काम केवल अधिकृत कंपनियों को ही सौंपा जाना चाहिए। यह नए स्टार्टअप्स के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है।
भारत में लिथियम खनिज से पूरी तरह लाभ कब मिलेगा और हम चीन पर निर्भरता कब कम कर पाएँगे ?
डॉ. विनोद तिवारी : भारत एक विशाल देश है, न केवल खनिजों और संसाधनों के मामले में बल्कि मैग्नीशियम, कोबाल्ट और अन्य खनिजों में भी। हाल ही में तेल की खोज और उत्खनन का काम भी शुरू हुआ है।
यहां कुछ विशेष चुनौतियाँ हैं, जिनकी वजह से अब तक खनिज उत्खनन में अपेक्षित गति नहीं आई है। लेकिन वर्तमान में सरकार का विज़न बहुत बड़ा है। सरकार यह प्रयास कर रही है कि भारत किसी भी विशेष संसाधन के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर न रहे।
आप शायद जानते हैं कि भारत की आर्थिक वृद्धि को पूरी दुनिया आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रही है। इस वजह से अन्य देशों ने अपने नियम और नीतियाँ बदल दी हैं, जैसे कि अमेरिका में H1B वीज़ा के नियम। कुछ देश भारत की तेजी से बढ़ती शक्ति को चुनौती मानते हैं और इसलिए भारत को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनना होगा। इसलिए खनिज उत्खनन और संसाधनों के विकास पर काम चल रहा है और यह योजनाओं में शामिल है।
इलेक्ट्रिफिकेशन के बाद चीन पर निर्भरता कम कैसे करेंगे और क्या लिथियम-आयन के अलावा सोडियम-आयन जैसी वैकल्पिक बैटरियाँ भी समाधान हैं?
डॉ. विनोद तिवारी : यह एक पूर्ण सोच में बदलाव है जो हर व्यक्ति में आना चाहिए। यह केवल दिल्ली में बैठे लोगों या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। अगर हम सभी यह समझ लें कि भारत को आत्मनिर्भर बनाना हमारा कर्तव्य है, तो निश्चित रूप से हमारी सोच, निवेश, R&D और काम करने का तरीका बदल जाएगा।
किसी ने मुझे बताया और मुझे यह बिल्कुल गलत लगा—उन्होंने कहा कि अगर भारत से 10 लोग अमेरिका जाते हैं, तो वे वहाँ सीखते हैं और अमेरिका के लिए काम करते हैं। वहीं, एक चीनी व्यक्ति ने कहा कि अगर चीन से 10 लोग बाहर जाते हैं, तो वे सीखते हैं और वापस आकर चीन के लिए काम करते हैं। यही सबसे बड़ा अंतर है। हममें अभी भी यह मानसिकता विकसित नहीं हुई है कि हम अपने देश के लिए काम करें। हमें इंडिविजुअल लेवल पर भी देश के लिए काम करना होगा। जब हम हर स्तर पर ऐसा करेंगे, तभी R&D, निवेश और इंडस्ट्री विकास स्वाभाविक रूप से होगा।
निष्कर्ष
इस चर्चा से यह स्पष्ट हुआ कि बैटरी न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों बल्कि पूरे ऊर्जा परिदृश्य की रीढ़ बनने जा रही है। गुजरात जैसे राज्य—जहाँ धोलेरा और सनंद में बड़े निवेश हो रहे हैं—भारत को वैश्विक बैटरी मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
हमने देखा कि स्पष्ट नीति, इंडस्ट्री और अकादमिक सहयोग, R&D में निवेश, और बैटरी रीसायक्लिंग व रिपर्पजिंग आने वाले समय में सबसे अहम स्तंभ होंगे। यदि इन पर सही दिशा में काम किया जाए तो भारत न केवल अपनी ऊर्जा ज़रूरतें खुद पूरी करेगा बल्कि दुनिया को भी समाधान उपलब्ध कराएगा।
ईवी और बैटरी सेक्टर में मौजूद चुनौतियाँ दरअसल नए स्टार्टअप्स और इनोवेटर्स के लिए अवसर हैं। अगर हम सभी मिलकर काम करें—सरकार, उद्योग, शिक्षा जगत और उद्यमी—तो भारत 2030 तक न केवल EV अपनाने के लक्ष्य को हासिल करेगा बल्कि 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता (Energy Independence) की दिशा में भी एक मजबूत कदम बढ़ाएगा।