
भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए घरेलू स्तर पर ई-कारों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक बेहद आकर्षक योजना की घोषणा की है। यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य न केवल भारत को वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना है, बल्कि देश को ऑटोमोबाइल विनिर्माण का वैश्विक केंद्र भी बनाना है।
क्या है योजना का लक्ष्य?
यह योजना केवल एक नीतिगत कदम नहीं, बल्कि भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की दिशा में एक रणनीतिक रोडमैप है।
1 भारत को इलेक्ट्रिक कार निर्माण का वैश्विक हब बनाना: इस योजना का उद्देश्य है कि भारत को केवल EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल) का उपभोक्ता नहीं, बल्कि उत्पादक और निर्यातक देश बनाया जाए। विदेशी कंपनियों को भारत में प्लांट लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, भारत से EV का निर्यात बढ़ेगा, भारत में R&D और टेक्नोलॉजी डेवेलपमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत ऑटोमोटिव सेक्टर में चीन, अमेरिका और जर्मनी जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को टक्कर दे सकेगा।
2 विदेशी निवेश को आकर्षित करना: सरकार ने ईवी कारों के सीमित आयात पर सीमा शुल्क में भारी छूट दी है, जिससे टेस्ला जैसी वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित हो सकें। इस योजना से FDI (Foreign Direct Investment) बढ़ेगा, विदेशी ब्रांड भारतीय कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर या पार्टनरशिप कर सकती हैं।
3 अत्याधुनिक तकनीक को भारत में लाना: जब ग्लोबल कंपनियां भारत में आएंगी, तो वे अपने साथ लेटेस्ट ईवी टेक्नोलॉजी भी लाएंगी, जैसे कि:- बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स,स्वचालित ड्राइविंग फीचर, ऊर्जा दक्षता तकनीक और इससे भारतीय इंजीनियरिंग और इनोवेशन सेक्टर को नई दिशा मिलेगी।
4 रोजगार के नए अवसर सृजित करना: ईवी इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न होगा: फैक्ट्री लेवल पर टेक्निशियन, इंजीनियर, ऑपरेटर, सप्लाई चेन, कस्टमर सपोर्ट, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, ईवी सर्विस और मेंटेनेंस प्रोफेशनल्स की मांग बढ़ेगी और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा।
5 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियानों को मजबूती देना: योजना में घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA) की शर्तें हैं – यानी ज़्यादा से ज़्यादा कल-पुर्ज़े भारत में बनने चाहिए, भारत में ही R&D, डिजाइन और निर्माण से ‘मेक इन इंडिया’ को बल मिलेगा, जब भारत खुद के लिए उत्पादन करेगा, तब आत्मनिर्भरता संभव होगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और आयात पर निर्भरता कम होगी।
क्या है योजना के मुख्य आकर्षण?
यह योजना वैश्विक EV कंपनियों को भारत में आकर्षित करने के लिए कई आकर्षक प्रावधानों के साथ लाई गई है, जिनमें सबसे प्रमुख है — सीमा शुल्क में रियायत। आइए इसे सरल और स्पष्ट रूप में समझते हैं:
1 कम सीमा शुल्क पर आयात की अनुमति
जब कोई कंपनी भारत में कारों को पूरी तरह से निर्मित (CBU – Completely Built Units) रूप में आयात करती है, तो सीमा शुल्क 70% से 100% तक होता है, जिससे गाड़ियाँ काफी महंगी हो जाती हैं। इस योजना के तहत, सरकार ने यह सीमा शुल्क केवल 15% कर दिया है – लेकिन कुछ शर्तों के साथ।
अनुमोदित कंपनियों को 15% की रियायती सीमा शुल्क पर इलेक्ट्रिक पैसेंजर कार (CBU) आयात करने की अनुमति होगी, जिनका मूल्य न्यूनतम $35,000 (CIF) हो। ये छूट केवल प्रीमियम या मिड-हाई रेंज ईवी कारों के लिए होगी — ताकि भारत में सस्ती गाड़ियाँ आयात कर घरेलू निर्माता को नुकसान न पहुंचे।
- हर साल अधिकतम 8,000 गाड़ियों के आयात की छूट
- 5 वर्षों तक यह छूट लागू रहेगी
- अप्रयुक्त वार्षिक कोटा अगले वर्षों में स्थानांतरित किया जा सकेगा
2 विशाल निवेश अवसर
इस योजना के तहत कंपनियों के लिए भारत में विशाल निवेश अवसर उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे देश में दीर्घकालिक इलेक्ट्रिक वाहन मैन्युफैक्चरिंग का आधार तैयार किया जा सके। योजना के अनुसार, किसी भी अनुमोदित कंपनी को कम से कम 4,150 करोड़ रुपये का निवेश करना अनिवार्य है। यह निवेश मुख्य रूप से नई फैक्ट्री, आधुनिक मशीनरी, इंजीनियरिंग अनुसंधान एवं विकास (R&D) और चार्जिंग अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में किया जाएगा। इससे देश में उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन, इनोवेशन और टिकाऊ मोबिलिटी को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, योजना में यह भी प्रावधान है कि ब्राउनफील्ड परियोजनाओं — यानी पहले से मौजूद उत्पादन इकाइयों को अपग्रेड करके — के जरिए भी निवेश किया जा सकता है, बशर्ते उनका स्पष्ट भौतिक सीमांकन हो। इससे न केवल नए निवेशकों को अवसर मिलेगा, बल्कि मौजूदा ऑटोमोबाइल कंपनियाँ भी अपने प्लांट्स को EV उत्पादन के लिए परिवर्तित कर सकेंगी। यह प्रावधान निवेशकों के लिए लचीलापन और व्यवहारिकता सुनिश्चित करता है।
- कम से कम ₹4,150 करोड़ का निवेश अनिवार्य
- नई फैक्ट्री, मशीनरी, R&D और चार्जिंग अवसंरचना में निवेश शामिल
- ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के लिए भी अवसर
3 बैंक गारंटी का प्रावधान
योजना के प्रभावी क्रियान्वयन और कंपनियों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए इसमें बैंक गारंटी का प्रावधान रखा गया है। इसके तहत, प्रत्येक अनुमोदित आवेदक को या तो योजना के तहत प्राप्त कुल सीमा शुल्क छूट या 4,150 करोड़ रुपये (इनमें से जो अधिक हो) की राशि के बराबर बैंक गारंटी प्रस्तुत करनी होगी। यह गारंटी किसी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक से ली जानी चाहिए और यह पूरे योजना कालखंड के दौरान हर समय वैध रहनी चाहिए। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियाँ केवल आयात लाभ उठाने तक सीमित न रहें, बल्कि वे भारत में स्थायी निवेश, स्थानीय निर्माण और घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA) जैसी शर्तों का भी पूरी तरह पालन करें। यदि कोई कंपनी निर्धारित शर्तों का उल्लंघन करती है, तो यह बैंक गारंटी सरकार के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करेगी। इससे सरकार और निवेशकों के बीच पारदर्शिता और विश्वास का माहौल बनता है।
- योजना के तहत कुल सीमा शुल्क छूट या ₹4,150 करोड़ (जो अधिक हो) की बैंक गारंटी आवश्यक
- योजना अवधि के दौरान हर समय गारंटी वैध रहनी चाहिए
4 स्पष्ट DVA (डोमेस्टिक वैल्यू एडिशन) लक्ष्य
इस योजना का एक प्रमुख स्तंभ है,स्पष्ट घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA - Domestic Value Addition) लक्ष्य, जो भारत में स्थानीय निर्माण और सप्लाई चेन को मजबूत करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। इसके अंतर्गत कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे आयात पर निर्भर रहने की बजाय भारत में ही वाहन निर्माण से जुड़े अधिक से अधिक कंपोनेंट और सेवाओं का उत्पादन करें। इससे न केवल स्थानीय उद्योगों को अवसर मिलेगा, बल्कि भारत में ईवी टेक्नोलॉजी के विकास, इनोवेश और कौशल निर्माण को भी गति मिलेगी। यह प्रावधान “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” अभियानों को मजबूती देता है और देश को एक वैश्विक ईवी निर्माण हब बनाने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाता है। साथ ही, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परीक्षण एजेंसियों के माध्यम से DVA का प्रमाणन सुनिश्चित किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता और गुणवत्ता दोनों बनी रहेगी।
- घरेलू निर्माण और स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा
- ईवी टेक्नोलॉजी को भारत में विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम
कौन उठा सकता है लाभ?
इस योजना का लाभ उठाने के अवसर कई स्तरों पर उपलब्ध हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की कंपनियों को भारत के ईवी इकोसिस्टम में भाग लेने का मौका मिलेगा। सबसे पहले, वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनियां जो भारत में निवेश करना और उत्पादन इकाइयां स्थापित करना चाहती हैं, वे इस योजना के प्रमुख लाभार्थी हो सकती हैं। इसके साथ ही, भारतीय ऑटोमोबाइल और ईवी सेक्टर की कंपनियां भी इस योजना का लाभ उठा सकती हैं, जो विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी (ज्वाइंट वेंचर ) या रणनीतिक गठजोड़ के माध्यम से उन्हें भारत लाने और उनके साथ संयुक्त उत्पादन करने की योजना बना रही हैं। इसके अतिरिक्त, यह योजना ऑटोमोबाइल स्टार्टअप्स और एमएसएमई के लिए भी एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत करती है, जो ईवी निर्माण, उपकरण, बैटरी, सॉफ़्टवेयर और स्थानीय सप्लाई चेन में पहले से कार्यरत हैं या कार्य करना चाहते हैं। इन कंपनियों को वैश्विक खिलाड़ियों के साथ काम करने, तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने और बाजार विस्तार का लाभ मिल सकता है, जिससे भारत का ईवी इकोसिस्टम व्यापक और आत्मनिर्भर बन सकेगा।
- वैश्विक ईवी निर्माता कंपनियां जो भारत में निवेश करना चाहती हैं
- भारतीय ऑटोमोबाइल और ईवी सेक्टर की कंपनियां जो साझेदारी या ज्वाइंट वेंचर के जरिए वैश्विक कंपनियों को भारत ला सकती हैं
- ऑटोमोबाइल स्टार्टअप्स और एमएसएमई जो ईवी उत्पादन और सप्लाई चेन में काम कर रही हैं
आवेदन प्रक्रिया
इस योजना के अंतर्गत भाग लेने के इच्छुक निवेशकों और कंपनियों के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी रखा गया है। सरकार द्वारा जल्द ही आवेदन विंडो खोली जाएगी, जिसके माध्यम से सभी इच्छुक कंपनियाँ ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगी। आवेदन जमा करते समय कंपनियों को ₹5,00,000 का गैर-वापसीयोग्य आवेदन शुल्क देना अनिवार्य होगा। आवेदन जमा करने की समय सीमा 120 दिन या उससे अधिक होगी, जो आवेदन आमंत्रण नोटिस में स्पष्ट रूप से दर्शाई जाएगी। इस प्रक्रिया को लेकर सभी विस्तृत दिशा-निर्देश, पात्रता मानदंड और नियमावली भारी उद्योग मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहे और इच्छुक कंपनियाँ योजना की सभी शर्तों को स्पष्ट रूप से समझ सकें। यह प्रक्रिया न केवल निवेशकों के लिए सहज होगी, बल्कि इससे समयबद्ध और व्यवस्थित आवेदन प्रणाली सुनिश्चित की जा सकेगी।
- आवेदन विंडो जल्द खुलेगी
- आवेदन ऑनलाइन होंगे
- ₹5,00,000 का गैर-वापसीयोग्य आवेदन शुल्क अनिवार्य
- आवेदन की समय सीमा नोटिस के अनुसार 120 दिन (या अधिक) होगी
- नोटिस और विस्तृत दिशानिर्देश भारी उद्योग मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किए जाएंगे।
क्यों जुड़ें इस योजना से?
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन सेक्टर तेजी से विस्तार कर रहा है और यह आने वाले वर्षों में देश की सबसे बड़ी और उभरती हुई उद्योग श्रेणियों में से एक बनने जा रहा है। ऐसे में इस योजना से जुड़ना कंपनियों के लिए एक रणनीतिक और लाभकारी निर्णय हो सकता है। सरकार की ओर से नीतिगत स्पष्टता, प्रोत्साहन और सहयोग मिलने के कारण यह योजना निवेशकों को विश्वास और स्थिरता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, यह वैश्विक ईवी ब्रांड्स को भारत में अपने पैर जमाने का सुनहरा अवसर देती है, जहां वे न केवल अपना उत्पादन आधार स्थापित कर सकते हैं, बल्कि तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार का लाभ भी उठा सकते हैं। यह योजना दीर्घकालिक सोच के साथ तैयार की गई है, जो एक स्थिर, नवाचारी और टिकाऊ व्यावसायिक वातावरण प्रदान करती है। 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे अभियानों के साथ जुड़कर कंपनियाँ न केवल मुनाफा कमा सकती हैं, बल्कि भारत की हरित गतिशीलता क्रांति का भी हिस्सा बन सकती हैं।
- भारत में ईवी सेक्टर के तेजी से बढ़ते अवसर
- सरकारी सहयोग और नीतिगत स्पष्टता
- वैश्विक ब्रांड्स के लिए भारत में पैर जमाने का सुनहरा मौका
- दीर्घकालिक नीति और स्थिर व्यावसायिक वातावरण
निष्कर्ष
यह योजना भारत के ईवी उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का जरिया बनेगी। यदि आप ईवी सेक्टर से जुड़े हैं या इस क्षेत्र में निवेश के इच्छुक हैं, तो यह आपके लिए सुनहरा अवसर है। समय रहते योजना का लाभ उठाइए और भारत की हरित ऊर्जा क्रांति में भागीदार बनिए।