
भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने के लिए व्यापक योजनाएं शुरू की हैं, जो न केवल पर्यावरण के संरक्षण में सहायक हैं बल्कि स्वदेशी निर्माण और तकनीकी विकास को भी गति देती हैं। बढ़ते प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए ईवी अपनाना समय की मांग बन चुकी है। इसी दिशा में सरकार का प्रयास है कि देशभर में मजबूत ईवी इकोसिस्टम तैयार किया जाए।
सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है फेम इंडिया योजना (FAME India - Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles), जिसका दूसरा चरण 1 अप्रैल 2019 से शुरू होकर 31 मार्च 2024 तक चला। इस योजना के तहत दोपहिया, तिपहिया और चारपहिया ईवी के लिए आर्थिक सहायता दी गई, साथ ही सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना को भी बढ़ावा मिला। कुल ₹11,500 करोड़ के बजटीय समर्थन से यह योजना ईवी अपनाने की दिशा में अच्छा साबित हुई।
सरकार ने हाल ही में पीएम ई-ड्राइव योजना शुरू की है, जो 1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2026 तक प्रभावी रहेगी। ₹10,900 करोड़ के बजट से संचालित इस योजना का उद्देश्य न केवल ईवी को बढ़ावा देना है, बल्कि परीक्षण एजेंसियों को उन्नत बनाना और ई-ट्रक, ई-बस, ई-एम्बुलेंस जैसे भारी वाहनों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना भी है। यह पहल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को समग्र रूप से मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
बैटरी निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए सरकार ने उन्नत रसायन सेल (ACC) पीएलआई योजना की शुरुआत की, जिसके तहत ₹18,100 करोड़ की सहायता से 50 गीगावाट घंटे की क्षमता वाले एसीसी बैटरियों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य एक प्रतिस्पर्धी घरेलू विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है जो आयात पर निर्भरता को कम करेगा।
इसके अलावा, ऑटो और ऑटो कंपोनेंट उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भी उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना लागू की गई है, जिसका बजट ₹25,938 करोड़ है। यह योजना घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA) के साथ उन्नत ऑटो तकनीकों को भारत में विकसित करने के लिए निवेश को आकर्षित करती है। इससे देश में वैश्विक स्तर की ईवी निर्माण क्षमताएं विकसित होने की संभावना है।
ईवी के सार्वजनिक परिवहन में उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री ई-बस सेवा योजना शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य 38,000 से अधिक इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती को समर्थन देना है। इसके अंतर्गत ऑपरेटरों को भुगतान सुरक्षा व्यवस्था प्रदान की जाती है ताकि सार्वजनिक परिवहन तंत्र को मजबूती मिल सके।
ईवी चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए विद्युत मंत्रालय ने हाल ही में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो चार्जिंग स्टेशन की स्थापना, संचालन और मानकों को स्पष्ट करते हैं। इसके साथ ही, वित्त मंत्रालय ने ईवी पर जीएसटी को घटाकर 5% कर दिया है, जो खरीदारों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी है। वहीं, सड़क परिवहन मंत्रालय ने बैटरी चालित वाहनों को परमिट और रोड टैक्स से छूट प्रदान की है।
इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में सरकार की इन पहलों ने न केवल निवेशकों को आकर्षित किया है, बल्कि आम उपभोक्ताओं में भी ईवी को लेकर विश्वास पैदा किया है। जैसे-जैसे चार्जिंग नेटवर्क मजबूत हो रहा है और तकनीक सुलभ बन रही है, वैसे-वैसे भारत इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अगले कुछ वर्षों में भारत ईवी क्रांति के केंद्र में होगा।इंजीनियरिंग अनुसंधान एवं विकास तथा उत्पाद डिजाइन एवं विकास पर किए गए व्यय को पीएलआई-ऑटो, पीएलआई एसीसी और एसपीएमईपीसीआई योजनाओं के अंतर्गत पात्र निवेश के हिस्से के रूप में माना जा सकता है।
एमएचआई की पूंजीगत वस्तु योजना के तहत, इलेक्ट्रिक वाहनों सहित अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की लागत का 80 प्रतिशत तक समर्थन दिया जाता है। ये परियोजनाएँ आईआईटी, आईआईएससी आदि जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में स्थित हैं। शेष 20 प्रतिशत उद्योग भागीदारों द्वारा वहन किया जाता है।
भारत में उपलब्ध न होने वाली विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित प्रौद्योगिकियां भी शामिल हैं।
पीएम ई-ड्राइव के अंतर्गत, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित परीक्षण के लिए, परीक्षण एजेंसियों के उन्नयन हेतु 780 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इससे ऑटोमोटिव उद्योग के इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को भी सुविधा होगी।
इसके अलावा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास केंद्र, हैदराबाद स्थित पाउडर धातुकर्म और नई सामग्रियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उन्नत अनुसंधान केंद्र (एआरसीआई) ने कई उन्नत बैटरी तकनीकें विकसित की हैं। ये तकनीकें निम्नलिखित हैं:-
- लिथियम और सोडियम आयन तथा लिथियम सल्फर (एलआईएस) बैटरियों के लिए सामग्रियों का विकास; बेलनाकार और पाउच कोशिकाओं का निर्माण और सत्यापन(वेरिफाइड)।
- कोबाल्ट मुक्त उच्च वोल्टेज कैथोड सामग्री ( उच्च ऊर्जा ली-आयन बैटरी अनुप्रयोग के लिए एलआईएमएनएफईपीओ4 और एलआईएनआई5एमएन1.5O4 )
- हाई परफॉर्मेंस एनवीपी, कैथोड के रूप में स्तरित ऑक्साइड और एनए-आयन बैटरी अनुप्रयोगों के लिए एनोड के रूप में जैव-अपशिष्ट से हार्ड कार्बन
- हाई परफॉर्मेंस और स्थिर एलआई-एस बैटरियों के लिए धातु ऑक्साइड संशोधित कार्बन सल्फर मिश्रित कैथोड।
- ईवी अनुप्रयोगों में बैटरी थर्मल मैनेजमेंट सिस्टम के लिए लागत प्रभावी और हाई परफॉर्मेंस वाले पूरे पीसीएमएस का विकास।
- ईवी और ईएसएस अनुप्रयोगों में एलआईबी के विकल्प के रूप में एल्यूमीनियम-आयन बैटरी का विकास।
- एलआईबी और अन्य बैटरी प्रणालियों के त्वरित सेवा जीवन पूर्वानुमान के लिए हाइब्रिड मॉडल का विकास।
- बैटरी इलेक्ट्रोड निर्माण के लिए पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया (गीला और सूखा) का विकास
- तापीय ऊर्जा (Heat Energy) को सोखने, जमा करने और बदलने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक बनाई है। इस तकनीक से किसी भी धातु या उसकी मिश्रधातु (जैसे स्टील, एल्युमिनियम आदि) के अंदर छोटे-छोटे छेद (पोर) और उनकी बनावट को आसानी से बदला जा सकता है। इससे धातु की अंदरूनी संरचना को इस तरह तैयार किया जा सकता है कि वह गर्मी को बेहतर तरीके से सोख सके, स्टोर कर सके और दूसरे रूप में बदल सके। यह तकनीक ऊर्जा से जुड़े उपकरणों को और अधिक असरदार और टिकाऊ बना सकती है।
निष्कर्ष
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बहुपक्षीय और दूरदर्शी कदम उठाए हैं, जिनमें नीति निर्माण, वित्तीय सहायता, अनुसंधान व तकनीकी विकास और अवसंरचना मजबूती शामिल हैं। फेम-2, पीएम ई-ड्राइव, पीएलआई जैसी योजनाओं के माध्यम से न केवल ईवी को आम जनता तक पहुँचाया जा रहा है, बल्कि देश को बैटरी और ईवी निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी तेजी से काम हो रहा है।
इसके साथ ही चार्जिंग स्टेशनों का विस्तार, जीएसटी में छूट, रोड टैक्स व परमिट में रियायतें, और उन्नत बैटरी तकनीकों का विकास – सभी मिलकर भारत को वैश्विक ईवी क्रांति का हिस्सा बना रहे हैं। इन पहलों से यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में भारत इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के क्षेत्र में एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभरेगा, जिससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा, बल्कि देश की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास को भी नई दिशा मिलेगी।