
इंडिया एनर्जी स्टोरेज अलायंस (IESA) द्वारा आयोजित इंडिया एनर्जी स्टोरेज वीक 2025 (IESW) का 11वां संस्करण आज IICC यशोभूमि, नई दिल्ली में भव्य उद्घाटन समारोह के साथ शुरू हुआ। इस दौरान IESA द्वारा "IESA मार्केट रिपोर्ट्स" लॉन्च की गई, जिसमें यह अनुमान लगाया गया कि भारत की ग्रीन हाइड्रोजन की मांग 2032 तक 8.8 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) तक पहुंच सकती है, जो 3% की CAGR दर से वृद्धि दर्शाती है।
हालांकि, भारत में 9 MTPA से अधिक क्षमता वाले ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट्स की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इनमें से कुछ ही प्रोजेक्ट्स Final Investment Decision (FID) तक पहुंचे हैं या घरेलू/अंतरराष्ट्रीय बाजारों से दीर्घकालिक समझौते कर पाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यदि घोषित क्षमता का 30% ही अगले दस वर्षों में चालू हो पाया, तो इलेक्ट्रोलाइटिक और बायो-हाइड्रोजन देश की लगभग 31% घरेलू मांग को 2032 तक पूरा कर पाएगा।
डॉ. अजय माथुर, पूर्व महानिदेशक - इंटरनेशनल सोलर अलायंस और प्रोफेसर, IIT दिल्ली ने कहा, “IESW 2025 बैटरी और स्टोरेज समुदायों की सामूहिक आकांक्षाओं का प्रतीक है। यह मंच नवाचार, ज्ञान-विनिमय और साझा लक्ष्यों के लिए उद्योग के पेशेवरों को एकत्र करता है।”
समारोह में प्रमुख अतिथियों में शामिल थे: मलिनी दत्त, ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट कमिश्नर – NSW सरकार; मनीष शर्मा, चेयरमैन, पैनासोनिक; स्टीफन फर्नांड्स, फाउंडर, CES;विनायक वालिंबे, एमडी, CES;देबमाल्य सेन, प्रेसिडंट, IESA; साथ ही 200 से अधिक वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के दिग्गज।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि NGHM के तहत चल रही योजनाओं के लिए विभिन्न ट्रेंचों में सब्सिडी, इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण और ग्रीन अमोनिया टेंडर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ओडिशा (38%), गुजरात (26%), कर्नाटक (12%) और आंध्र प्रदेश (6%)—इन चार राज्यों में 82% GH2 प्रोजेक्ट्स की घोषणा हुई है, जिनमें से 72% प्रोजेक्ट्स अमोनिया निर्माण के लिए लक्षित हैं।
विनायक वालिंबे (एमडी, CES) ने कहा,“नीति प्रयासों और सरकारी योजनाओं के बावजूद, डीकार्बोनाइजेशन के सामने कई चुनौतियाँ हैं। आज लॉन्च हुई IESA इंडिया हाइड्रोजन रिपोर्ट नीतिगत जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।”
IESA की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फॉसिल फ्यूल आधारित हाइड्रोजन का उत्पादन लागत लगभग $1 प्रति किलो से दोगुना है। वहीं, ग्रीन हाइड्रोजन का LCOH (Levelized Cost of Hydrogen) बेस केस में 2 से 4 गुना, और ऑप्टिमिस्टिक केस में 1.5 से 2.5 गुना अधिक है। उच्च लागत का कारण—स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन, इलेक्ट्रोलाइज़र CAPEX, और ऊर्जा उपयोग की सीमाएं हैं।
आईईएसए (IESA) के प्रेसिडेंट देबमाल्य सेन ने कहा “सरकारी सहयोग से IESW 2025 एक ऐसा मंच बनेगा जो भारत को 5 MTPA ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन लक्ष्य की ओर अग्रसर करेगा। यह आयोजन न केवल निवेश और इनोवेशन को प्रोत्साहित करेगा बल्कि वैश्विक विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं को भी एक साथ लाएगा।”
IESW 2025 में 20 से अधिक देशों की कंपनियाँ और सरकारी प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। कार्यक्रम में EVs, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, सोलर, बैटरियों और ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़े 300+ इनोवेशन और 7+ नई फैक्ट्रियों/प्रोडक्ट घोषणाओं का अनावरण होगा। तीन दिवसीय इस आयोजन में लिथियम-आयन, लिथियम-सल्फर, सोडियम-आयन जैसी अत्याधुनिक ऊर्जा स्टोरेज तकनीकों की भी प्रदर्शनी होगी।