
मारुति सुजुकी ने गुजरात के हंसलपुर प्लांट में अपने पहले ग्लोबल बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV) eVitara और सुजुकी की पहली लिथियम-आयन बैटरी, सेल और इलेक्ट्रोड निर्माण की शुरुआत कर दी है। इस अवसर पर कंपनी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने कहा कि भारत में बैटरी सेल निर्माण की कमी देश के इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए सबसे बड़ी बाधा है।
उन्होंने कहा कि कच्चे माल की भारी आयात निर्भरता कंपनियों को निवेश से रोक रही है। भार्गव ने बताया, “एक बैटरी प्लांट लगाने में लगभग 20,000 करोड़ रुपये लगते हैं। लेकिन जब कच्चा माल उपलब्ध ही नहीं है और सिर्फ एक सप्लायर पर निर्भर रहना पड़ता है, तो निवेश का रिस्क बहुत बड़ा हो जाता है। यही वजह है कि कंपनियां भारत में सेल निर्माण में निवेश करने से हिचक रही हैं।”
हाल ही में सुजुकी मोटर ने तोशिबा और डेंसो के साथ साझेदारी में लिथियम बैटरी का नया प्लांट खोला है, लेकिन यहां बनी बैटरियां सिर्फ हाइब्रिड वाहनों के लिए उपयोग होंगी, न कि पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए। भार्गव ने कहा कि फिलहाल भारत में बैटरी पैकेजिंग तो हो रही है, लेकिन सेल का वास्तविक उत्पादन अभी तक शुरू नहीं हुआ है।
इससे पहले टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के एमडी शैलेश चंद्र ने भी सेल निर्माण के स्थानीयकरण (localisation) की जरूरत पर जोर दिया था। महिंद्रा एंड महिंद्रा इस दिशा में विचार कर रही है, वहीं हुंडई ने एक्साइड इंडस्ट्रीज के साथ साझेदारी कर बैटरी निर्माण को बढ़ावा देने का कदम उठाया है।
फिलहाल भारत के इलेक्ट्रिक वाहन सेक्टर की ज्यादातर जरूरतें चीन और हांगकांग से आयातित सेल व बैटरियों पर पूरी हो रही हैं। चीन वैश्विक स्तर पर निकेल (65%), कोबाल्ट (68%) और लिथियम (60%) जैसे अहम खनिजों की प्रोसेसिंग में सबसे आगे है।
भार्गव ने कहा कि हाल ही में चीन से रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई में आई रुकावट एक चेतावनी संकेत है। उन्होंने कहा, “अगर मैं निवेशक होता, तो आयातित कच्चे माल पर इतनी निर्भरता मेरे लिए सबसे बड़ा रिस्क होता।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए अपनी वैकल्पिक और स्वच्छ तकनीकें विकसित करनी होंगी। भार्गव ने विश्वास जताया कि भारतीय वैज्ञानिक और कंपनियां अपने दम पर समाधान खोज सकती हैं और प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार कर सकती हैं।