
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग के तेजी से विस्तार को देखते हुए 2030 तक 5,760 से 6,852 एकड़ ज़मीन की आवश्यकता होगी। यह ज़मीन EV निर्माण, लिथियम-आयन बैटरी प्लांट और सार्वजनिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए उपयोग की जाएगी। विश्व पर्यावरण दिवस पर सैविल्स इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट "Charged for Change: How EVs Are Reshaping Indian Real Estate" में बताया गया है कि इस इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए 7.5 से 9.0 अरब डॉलर का निवेश ज़रूरी होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल ईवी बिक्री 2030 तक 25.3 से 31.8 मिलियन यूनिट तक पहुंच सकती है, जो देश के 30 प्रतिशत ईवी पेनिट्रेशन के लक्ष्य के अनुरूप है। ईवी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के लिए 2,009 से 2,467 एकड़ ज़मीन और 43.8 से 53.7 मिलियन वर्ग फीट बिल्ट-अप एरिया की आवश्यकता होगी। वहीं, सार्वजनिक चार्जिंग नेटवर्क के लिए 2,402 से 2,744 एकड़ ज़मीन और बैटरी निर्माण इकाइयों के लिए 1,348 से 1,641 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत होगी।
भारत की बैटरी उत्पादन क्षमता 2024 की 4 GWh से बढ़कर 2030 तक 147 से 179 GWh तक होने की उम्मीद है। यह देश को अपनी 13 प्रतिशत बैटरी मांग घरेलू स्तर पर पूरी करने में सक्षम बनाएगा। ईवी चार्जिंग नेटवर्क के लिए 81,000 से 92,500 सार्वजनिक और अर्ध-सरकारी चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता होगी, जो देशभर में ऑफिस परिसरों, मॉल्स और ट्रांजिट हब्स में स्थापित किए जाएंगे।
सैविल्स इंडिया (Savills India) के अनुसार, ईवी सेक्टर के विकास से औद्योगिक भूमि, वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स पार्क और असेंबली यूनिट्स के लिए रियल एस्टेट की मांग में तेज़ वृद्धि होगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकारी नीतियां, बढ़ती ईंधन कीमतें, पर्यावरणीय जागरूकता और बैटरी तकनीक में सुधार इस परिवर्तन के प्रमुख कारक हैं। यह इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास भारत को एक मजबूत ईवी इकोसिस्टम की ओर ले जाएगा, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय लक्ष्यों को बल मिलेगा।