आदिवासी कला और फूड बिज़नेस में छुपे बड़े अवसर

आदिवासी कला और फूड बिज़नेस में छुपे बड़े अवसर

आदिवासी कला और फूड बिज़नेस में छुपे बड़े अवसर
डॉ. मिलिंद कांबले इस इंटरव्यू में आदिवासी उद्यमिता, फ्रेंचाइज़ी मॉडल और Stand Up India जैसी योजनाओं के माध्यम से युवाओं और आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अपने अनुभव और दृष्टिकोण को साझा किया हैं।

भारत के उद्यमिता परिदृश्य को बदल रहे हैं। इस विशेष इंटरव्यू में, हमने बात की DICCI (Dalit Indian Chamber of Commerce & Industry) के चेयरमैन डॉ. मिलिंद कांबले से, जिन्होंने भारत में आदिवासी उद्यमिता, समावेशी विकास और युवा सशक्तिकरण को एक नई दिशा दी है।

डॉ. कांबले ने बताया कि किस प्रकार भारत की आदिवासी कला, संस्कृति और भोजन के माध्यम से tribal समुदाय आज देश के उभरते हुए उद्यमी बन रहे हैं। उन्होंने सरकार की Stand Up India जैसी योजनाओं, Skill Development के बढ़ते अवसरों और फ्रेंचाइज़ी मॉडल की तेज़ सफलता के बारे में भी विस्तार से चर्चा की। आइए जानें, कैसे डॉ. मिलिंद कांबले के प्रयासों से आदिवासी प्रतिभाओं, भारतीय विरासत और आधुनिक व्यवसाय मॉडल भारत में नई क्रांति ला रहे हैं।

सरकार आदिवासी उद्यमिता की ओर तेजी से बढ़ रही है। आप इस पर क्या कहना चाहेंगे?

डॉ. मिलिंद कांबले: उद्यमिता के लिए जरूरी है कि आपके पास कुछ कौशल और डोमेन नॉलेज हो। अगर हम आदिवासी समुदाय को देखें, तो उनके पास बहुत इनोवेशन और विविधता है, खासकर उनकी कला और खानपान में। जब हम उनके साथ काम कर रहे थे, तो हमें महसूस हुआ कि आदिवासी समुदाय सबसे कमजोर होते हुए भी सबसे सक्षम उद्यमी बन सकते हैं।

उनके पास अद्भुत कला है, जैसे डोकरा आर्ट, वारली पेंटिंग आदि। अगर आप इन सबको देखेंगे तो आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। उदाहरण के तौर पर, दंतेवाड़ा में प्रवीर कृष्णा नामक एक IAS अधिकारी थे, जो बाद में ट्राइफेड में गए। वहां उन्होंने आदिवासी फूड पार्क शुरू किया। आदिवासी खाना बहुत ही पौष्टिक होता है – जैसे कोदो, जिसे आज सरकार श्री अन्न के नाम से भी बढ़ावा दे रही है। ये सब प्राकृतिक, फाइबर से भरपूर मोटा अनाज है, जिसे आदिवासी और गरीब समुदाय काफी खाते हैं।

DICCI के रूप में, हम आदिवासी उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए वेंचर कैपिटल फंड, स्टैंड अप इंडिया स्कीम जैसे कई सपोर्ट सिस्टम लेकर आए हैं। हाल ही में मैं मुंबई के दलाल स्ट्रीट भी गया था, जहां एक आदिवासी उद्यमी, जो हमारे DICCI के सदस्य हैं, उन्होंने अपनी फ्रेंचाइज़ी खोली है। उनका ब्रांड 'Harleys' है और उन्होंने वहां एक बहुत ही शानदार शोरूम खोला है। मुझे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर याद आए, जिन्होंने 1917 में अमेरिका से पढ़कर आने के बाद दलाल स्ट्रीट पर अपनी कंसल्टेंसी शुरू की थी।

मैं खुद भी एक फैशन ब्रांड का मालिक हूं और मैंने झारखंड के जमशेदपुर के डोमन टुडू नामक एक आदिवासी उद्यमी को अपने ब्रांड का फैशन एंबेसडर बनाया है। मेरी बेटी भी DICCI Next Gen में काम कर रही है और पुणे में उन्होंने एक आदिवासी सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें आदिवासी नृत्य, कला और खासतौर पर 'बांस चिकन' जैसी खास डिश पेश की गई थी। बांस चिकन का स्वाद बहुत अनोखा होता है, जिसे हरे बांस में पकाया जाता है।हमारी कोशिश यही है कि हम अपने आदिवासी भाई-बहनों के उद्यमों को बढ़ावा दें, उन्हें आगे लाएं और उनकी कला को देश और दुनिया तक पहुंचाएं।

क्या सरकार फ्रेंचाइज़ी मॉडल के लिए भी कुछ कर रही है?

डॉ. मिलिंद कांबले:  स्टैंड अप इंडिया स्कीम, जो मेरी सोच थी, उसके तहत लगभग 70,000 एससी और एसटी युवाओं को 10 लाख से 1 करोड़ रुपये तक बिना किसी गिरवी के लोन मिला है। इसमें लगभग 20,000 आदिवासी उद्यमी भी हैं। फ्रेंचाइज़ी मॉडल मेरे हिसाब से भारत में बिज़नेस शुरू करने का सबसे सरल और सफल तरीका है। फ्रेंचाइज़ी मॉडल ‘प्लग एंड प्ले’ और ‘कैश एंड कैरी’ मॉडल है – आपको ब्रांड मिल जाता है, ग्राहक मिल जाते हैं और जैसे ही आप बिज़नेस शुरू करते हैं, आपकी कमाई भी शुरू हो जाती है।

इस मॉडल से स्टार्टअप के मुकाबले जल्दी परिणाम मिलते हैं और स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत कई लोगों ने इसी मॉडल से अपने बिज़नेस शुरू किए हैं।

आजकल स्किल डेवलपमेंट पर सरकार काफी ध्यान दे रही है। इस बारे में आप क्या कहेंगे?

डॉ. मिलिंद कांबले:  सरकार ने इसके लिए 'स्किल डेवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप मिनिस्ट्री' बनाई है और इसके तहत 'नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल' काम कर रही है। इसमें इंडस्ट्री की जरूरतों के मुताबिक स्किल ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके अलावा 'विश्‍वकर्मा योजना' भी लाई गई है, ताकि पारंपरिक कारीगरों के कौशल को संरक्षित, उन्नत और आधुनिक बनाया जा सके।

सरकार का ध्यान है कि हर व्यक्ति के पास जरूरी स्किल्स हों, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके। हम DICCI के माध्यम से इस मिशन में पूरी तरह से सरकार के साथ काम कर रहे हैं।

निष्कर्ष:

डॉ. मिलिंद कांबले के साथ इस खास बातचीत में उन्होंने बताया कि भारत की असली शक्ति उसकी विविधता, सांस्कृतिक विरासत और जमीनी स्तर की उद्यमिता में छिपी है। आदिवासी समुदायों के पास अद्भुत कला, संस्कृति और व्यंजन हैं, जो न केवल भारत की पहचान हैं, बल्कि आज वैश्विक बाज़ार में भी बड़े अवसर पैदा कर रहे हैं।

सरकार की Stand Up India जैसी योजनाएं, फ्रेंचाइज़ी मॉडल और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स ने अब युवाओं और आदिवासी उद्यमियों के लिए सफलता की राह आसान बना दी है। डॉ. कांबले का यह संदेश कि "फ्रेंचाइज़ी मॉडल प्लग एंड प्ले है, और तुरंत व्यापार शुरू करने का सबसे कारगर तरीका है" आज के समय में हर नए उद्यमी के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है।

यह बातचीत न केवल आदिवासी और युवा उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रेरणा है, बल्कि यह भी दिखाती है कि अगर सही मार्गदर्शन और सहयोग मिले, तो भारत का हर नागरिक एक सफल उद्यमी बन सकता है।

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