स्कूल ऐसे होने चाहिए कि छुट्टियों में छात्र उसे मिस करें: पीयूष भारतीय, द बिग लीग

स्कूल ऐसे होने चाहिए कि छुट्टियों में छात्र उसे मिस करें: पीयूष भारतीय, द बिग लीग

स्कूल ऐसे होने चाहिए कि छुट्टियों में छात्र उसे मिस करें: पीयूष भारतीय, द बिग लीग
छात्रों को बड़े सपने देखने और उन सपनों को पूरा करने के रास्ते बताने वाली संस्था 'द बिग लीग' और 'एडमिड कार्ड' के सह-संस्थापक पीयूष भारतीय देश भर के स्कूलों से लगातार संपर्क कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण हो, जो वैश्विक स्तर पर अनूठे अंदाज में भारत का प्रतिनिधित्व करने को तत्पर हो।

बच्चों के लिए सही स्कूल का चुनाव कर पाना अक्सर माता-पिता के लिए आसान नहीं होता। एक ओर अपने बच्चों को वे सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं तो दूसरी ओर उनका दिल चाहता है कि उनके बच्चे अपने स्कूल से ही जीवन जीने का सही सलीका और तरीका भी सीख सकें। माता-पिता की इन्हीं चिंताओं को ध्यान में रखकर वर्ष 2018 में पीयूष भारतीय और रचित अग्रवाल ने मिलकर 'द बिग लीग' की स्थापना की। शिक्षा के क्षेत्र को उच्चतम स्तर तक पहुंचाने के लिए 'द बिग लीग' और 'एडमिड कार्ड' लगातार ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है, जहां देश भर के बच्चे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान पीयूष भारतीय ने 'अपाॅरच्युनिटी इंडिया' की वरिष्ठ संवाददाता सुषमाश्री से बातचीत की। पेश हैं उसके मुख्य अंश...

'द बिग लीग' और 'एडमिड कार्ड' के बारे में बताएं।

  • 'द बिग लीग' स्कूली छात्रों पर केंद्रित है और 'एडमिट कार्ड' काॅलेज के बच्चों पर। हम छात्रों को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। हमारा ध्यान उन बच्चों पर होता है जो आगे बढ़ना चाहते हैं और हम उन्हें बताते हैं कि शिक्षा के जरिए वे कैसे आगे बढ़ सकते हैं, अपने करियर में क्या कर सकते हैं। हम शिक्षा को प्रमोट करते हैं। उन छात्रों को बताते हैं कि पूरी दुनिया से अपने लिए वे सही स्कूल या काॅलेज का चुनाव किस तरह कर सकते हैं। हम उन्हें उस खास स्कूल या काॅलेज तक पहुंचने में हर तरह से मदद करते हैं, उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं। अगर आप देश के बाहर जाना चाह रहे हैं तो वीजा जैसी अन्य जरूरतों का भी हम ध्यान रखते हैं कि किस तरह से आपका यह सफर ज्यादा से ज्यादा आसान किया जा सके।

क्या आप छोटे शहरों के बच्चों से भी जुड़े हैं ?

  • हमारा पूरा काम ऑनलाइन है। देश के 700 से ज्यादा स्कूलों के बच्चे हमसे जुड़े हुए हैं। सुदूर क्षेत्रों के बच्चों को भी, उनके सपनों को जीने में हम मदद करते हैं। आज के बच्चे बड़े शहरों के हों या फिर छोटे शहरों के, उन्हें मालूम है कि उन्हें क्या चाहिए, बस उन्हें उस रास्ते की जानकारी नहीं है, जिससे होकर उन्हें गुजरना चाहिए, अगर हम उन्हें वह बता दें तो वे अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो सकेंगे। उनके इसी सफर में हम उनकी मदद करते हैं। हमारा ऑफिस दिल्ली-एनसीआर में है, हम यहीं से पूरे देश के बच्चों के साथ जुड़े रहते हैं और उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

  • हमारी हमेशा कोशिश होती है कि किस तरह से हम देशभर के छात्रों के साथ संपर्क में रह सकें और इसके लिए हम लगातार प्रयासरत भी रहते हैं। हम देशभर में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और ज्यादा से ज्यादा छात्रों के साथ संपर्क बनाकर रहने की कोशिश करते हैं। छोटे शहरों के बच्चे ज्यादा समर्पित हैं। उन्हें केवल यह बताने की जरूरत है कि किसी भी अपाॅरच्युनिटी यानी अवसर को वे कैसे पा सकते हैं, उसके बाद फौरन वे उसे झपट लेने की कोशिश करते हैं। छोटे शहरों के बच्चों में आज भी अपने शिक्षकों के लिए जो आदर भाव है, समर्पण का भाव है, वह तारीफ के काबिल है। वे सिर्फ यह समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या करना है और वे क्या बन सकते हैं, जिसे 'द बिग लीग' उन्हें समझाना चाहती है। हम उन बच्चों को वही विजन, वही सोच, वही नजरिया देना चाहते हैं, जिससे वे यह समझ सकें कि उन्हें क्या करना है। हम मानते हैं कि सिर्फ सपने दिखाना हमारा काम नहीं है, उन सपनों को पूरा करने का रास्ता बताना भी हमारा काम है और हम वही कर रहे हैं।

  • हमारा मुख्य लक्ष्य है कि बच्चे बड़ा सोचें। हम उनकी सोच को बड़ा बनाना चाहते हैं क्योंकि जब तक वे बड़ा सोचेंगे नहीं, तब तक बड़ा करेंगे कैसे? बच्चे बड़ा कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि उनकी सोच बड़ी हो और हम उनकी उसी सोच को बड़ा बनाने के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा बच्चों के संपर्क में लाने की कोशिश करते हैं। इसके पीछे हमारा मकसद होता है कि बच्चे जब अपने जैसे दूसरे बच्चों को संगीत, खेल, शिक्षा, डिबेट जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर करते हुए देखें तो उनके अंदर भी वही जज्बा जन्म ले। वे तय कर सकें कि उन्हें भी ऐसा ही कुछ करना है, जिससे सभी उनकी तारीफ करें, उन्हें पहचानें। यही हमारा लक्ष्य है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 हमारे देश को किस तरह से प्रभावित करेगा?

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लेकर भारत सरकार की तारीफ की जानी चाहिए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो बदलाव किए हैं, आने वाले समय में उसका असर हमें अवश्य देखने को मिलेगा। इस नीति के तहत पाठ्यक्रम में जो बदलाव किए गए हैं, आगे चलकर उसका सकारात्मक परिणाम हमें देखने को मिलेगा। आज दुनिया के अन्य देशों के पाठ्यक्रम और शिक्षा पद्धति के साथ हमारे देश की शिक्षा पद्धति और पाठ्यक्रम की तुलना की जा रही है। इसका प्रभाव हमें 10 साल बाद तब देखने को मिलेगा, जब आज के बच्चे वैश्विक स्तर पर हमारे देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। वे किस तरह से इस काम को अंजाम देंगे, वह आज के इस बदलाव का परिणाम होगा। शाॅर्ट टर्म में यानी कम समय में अगर हम अगर अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का प्रभाव देखना चाहते हैं तो वह यह होगा कि आज के बच्चे अपनी मर्जी के विषयों का चुनाव कर सकेंगे। वे हर उस विषय को पढ़ सकेंगे, जिसका चुनाव वे खुद करते हैं।

एआई और चैटजीपीटी जैसे बदलावों का शिक्षा जगत पर प्रभाव को किस तरह से समझाएंगे?

  • मानव विकास क्रम में समय के साथ कुछ-न-कुछ बदलाव देखने को मिलता ही है। एआई और चैटजीपीटी जैसी चीजें भी इस बदलाव का हिस्सा हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यह आज अचानक से आ गया है। बीते 50 वर्षों से एआई हमारी जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है। धीरे-धीरे हम उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर रहे हैं। आज के समय में इसकी चर्चा ज्यादा हो रही है तो कुछ शिक्षा व्यवसायियों को इस बात का भय सता रहा है कि कहीं एआई उनके व्यवसाय पर इस कदर हावी न हो जाए कि उन्हें अपना व्यवसाय बंद करना पड़ जाए। परंतु ऐसा नहीं है। जब भी नए बदलाव आते हैं, पुरानी चीजों के बंद हो जाने का भय सताता ही है, पर ऐसा होता नहीं है। बस जरूरत इस बात की होती है कि आप हर नई चीज को अपने साथ जोड़ने और उसके साथ जुड़कर उसका प्रयोग करने को खुद को पूरी तरह से तैयार कर लें। फिर, आपको ऐसा कोई भय नहीं सताएगा। शिक्षा के क्षेत्र में एआई माॅडल का प्रयोग शिक्षा को और भी आगे बढ़ाने में मदद करेगा। आज जब एक शिक्षक को एक साथ 50 छात्रों को पढ़ाना होता है तो वह आसान नहीं होता। हर बच्चे की सीखने की क्षमता अलग होती है, कोई विज्ञान में अच्छा होता है तो कोई इतिहास में। ऐसे में एक साथ सभी छात्र हर विषय को एक ही बार में समझने में अक्षम होते हैं। ज्यादा छात्र होने से स्कूल में सभी बच्चों को व्यक्तिगत रूप से समझा पाना मुश्किल हो जाता है। एआई शिक्षकों और छात्रों की इसी मुश्किल को आसान कर रहा है। वह शिक्षक और छात्र को एक ऐसा प्लेटफाॅर्म दे रहा है, जहां हर बच्चे को शिक्षक व्यक्तिगत रूप से आसानी से पढ़ा सकें और उसके सभी समस्याओं का समाधान कर सकें।

अपना स्कूल खोलने वालों को किन पांच बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए?

  1. सबसे जरूरी है कि आप ऐसे तरीकों का प्रयोग करें, जिससे छात्रों के अंदर सोचने-समझने की क्षमता में बदलाव लाया जा सके, उसे बढ़ाया जा सके।
  2. बच्चों के अंदर क्रिटिकल एबिलिटी (आलोचनात्मक क्षमता) के बजाय उनकी कम्यूनिकेशंस स्किल्स (बातचीत करने की क्षमता) और एबिलिटी टू आर्टिक्यूलेट (चीजों को स्पष्ट करने की क्षमता) को बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए।
  3. बच्चों के अंदर हेल्दी बिहेवियर पैदा करना जरूरी है ताकि वे खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रख पाएं। पढ़ाई के साथ-साथ जरूरी है कि बच्चे अलग-अलग खेलों से भी जुड़ें। इससे वे फिट रहेंगे और पढ़ाई में भी आगे बढ़ेंगे।
  4. बच्चों का वास्तविक दुनिया से परिचय कराना भी जरूरी है। बच्चों को लगता है कि वे जिस दुनिया से जुड़े हैं, वही सबकुछ है, जबकि वह भ्रम की दुनिया होती है। यही वजह है कि उन्हें वास्तविक दुनिया से जोड़ना जरूरी हो जाता है।
  5. स्कूलों को ऐसा बनाना चाहिए कि बच्चे हर रोज वहां जाना चाहें। छुट्टी हो तो बच्चे स्कूल को मिस करें, अपने शिक्षकों को मिस करें, लाइब्रेरी की पुस्तकों को मिस करें, दोस्तों को मिस करें, खेल के मैदान को मिस करें, हमें ऐसे स्कूलों का निर्माण करना चाहिए।
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