
हर वह इंसान, जो कुछ नया और बेहतर करने की सोच रखता है, तारीफ के काबिल होता है। खासकर तब, जब इसकी वजह में दूसरों की भलाई छिपी हो। कुछ ऐसा ही करने की मुहिम चला रहे हैं डाॅ. जतिन ककरानी। मध्यप्रदेश से बेंगलुरू तक का सफर पूरा कर चुके डाॅ. ककरानी अपने भाई के साथ मिलकर इस रास्ते पर काफी आगे निकल चुके हैं, लेकिन अभी उनका यह सफर लक्ष्य तक नहीं पहुंचा है। इसे अभी बहुत लंबा सफर तय करना है, जिसके लिए डाॅ. ककरानी अपनी टीम के साथ पूरी तरह से जुटे हुए हैं। उन्हें यकीन है कि जिस तरह से वे लगातार इस रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे हैं, वह दिन दूर नहीं, जब वे अपने लक्ष्य तक आसानी से पहुंच जाएंगे। और क्या कहते हैं वे, आइए जानते हैं...
अपने बारे में बताएं। आपका बैकग्राउंड क्या है? आप इस क्षेत्र में क्यों आए?
मैंने दंत चिकित्सा में ग्रेजुएशन किया है। साल 2015 से 2018 तक प्रोस्थोडोंटिक्स और इम्प्लांटोलाॅजी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। यह डेंटिस्ट्री का सबसे एडवांस ब्रांच है, जिसमें टेक्नोलाॅजी का सबसे ज्यादा प्रयोग सिखाया जाता है। यही वजह है कि दुनिया भर में जो भी सबसे लेटेस्ट टेक्नोलाॅजी प्रयोग किए जा रहे हैं, खासकर डेंटिस्ट्री में, वे सभी हमें मालूम होते हैं। मुझे ओरल मेडिसीन और रेडियोलाॅजी में गोल्ड मेडल मिला है। मैंने संत कोलंबिया यूनिवर्सिटी, यूएस से फेलोशिप किया है। वहां से लौटते ही मैं कई स्टार्टअप के साथ काम कर सकता था या अपना खुद का स्टार्टअप भी शुरू कर सकता था, लेकिन डेंटल क्षेत्र की हालत देखकर मैंने तय किया कि मुझे इसमें बदलाव लेकर आना है। अपने भाई के साथ मिलकर फिर मैंने इस ओर बदलाव लाने की सकारात्मक सोच के साथ अपना कदम बढ़ाया।
इस कंपनी के फाउंडर कौन हैं ?
हम दोनों भाइयों ने मिलकर यह कंपनी शुरू की है इसलिए हम दोनों ही इस कंपनी के को-फाउंडर्स हैं।
फिलहाल कितने लोग आपके साथ काम कर रहे हैं?
अभी 350 लोग हमारे साथ काम करते हैं।
आप कई देशों में जा चुके हैं। इसके बाजारीकरण को लेकर आपका अनुभव कैसा रहा है?
जब मेरी पढ़ाई पूरी हुई, उन दिनों टेक्नोलाॅजी के कारण डेंटल स्पेस पूरा चेंज हो रहा था। उन्हीं दिनों कुछ कंपनियों का 20 साल का पेटेंट पूरा हो रहा था, जो 1997 से शुरू हुई थी। 2017 में उनका पेटेंट खत्म हुआ। 2018 वह साल था, जब यूएस में कई स्टार्टअप में पश्चिमी देशों में काफी निवेश किया गया। भारत में उस दौर तक दंत चिकित्सा में कोई भी ब्रांड नहीं था। हमारी कोशिश है कि दक्षिण एशियाई देशों में हम वही ब्रांड बन सकें। इस टारगेट को पाने के लिए हम तकनीक के प्रयोग को अपना माध्यम बना रहे हैं। भारत इतना विशाल देश है, लेकिन आज भी यहां कोई भरोसेमंद दंत चिकित्सा ब्रांड नहीं है। दो लाख क्लीनिक हैं, फिर भी कोई ब्रांड नहीं है। आप देखेंगे तो 'रूट कनाल', जो कि दंत चिकित्सा का बहुत ही आम इलाज है, दिल्ली जैसे महानगर में भी उसका इलाज 1500 रुपये से लेकर 35 हजार रुपये तक में हो रहा है। मरीजों को आज भी यह नहीं मालूम है कि इस इलाज के लिए उन्हें 1500 रुपये देने चाहिए या 25 हजार रुपये? मरीज किसी पर भरोसा नहीं कर पाते। वे क्लीनिक जाते हैं, इलाज कराते हैं और इसके बाद उन्हें एक अच्छा खासा बिल थमा दिया जाता है। यह सब देखते हुए हमें लगा कि यह बहुत बड़ी अपॉर्च्युनिटी हमारे पास। उसी समय मेरा भाई एमबीए करके आया था। वह प्रोक्टर एंड गैम्बल में काम कर रहा था। तब यह जो इश्यु मैं डेंटल केयर मार्केट में देख रहा था, उस पर मैंने उसके साथ चर्चा करना शुरू किया। हमने इसे गंभीरता से लिया और इस पर काम करना शुरू किया। हमें समझ आ गया था कि हम भारतीय बाजार में कुछ बहुत बड़ा कर सकते हैं।
यकीनन हमने प्रेरणा पाश्चात्य बाज़ार से ली, लेकिन जो हमने किया वह भारतीयों की सोच और भारतीय बाज़ार को ध्यान में रखते हुए लिया गया निर्णय था। हमारे कुछ प्रतिस्पर्धी, जिन्होंने यूएस मार्केट का माॅडल काॅपी-पेस्ट किया था, आज वे संघर्ष कर रहे हैं। हमने जो माॅडल शुरू किया था, वो पूरी तरह से भारतीयों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था।
स्माइल्स डाॅट एआई नाम रखने के बाद आपने इसे बदलकर डेज़ी कर दिया। ऐसा क्यों?
स्माइल्स डाॅट एआई को अक्सर लोग स्माइल्स कह देते थे। दो लाख क्लीनिक में से 80 लाख से ज्यादा के नाम में कहीं न कहीं स्माइल्स शब्द का प्रयोग किया गया है। इस नाम से मार्केट में कई क्लीनिक थे, जिसका शुरू-शुरू में हमें लाभ भी मिला, क्योंकि लोग कहते थे कि हां, हमने आपके ब्रांड का नाम सुना हुआ है, हम आपके क्लीनिक गए हुए हैं। जब हम बहुत छोटे होते थे, तब हमें उसका लाभ मिला लेकिन जब हम विश्व स्तरीय निवेशकों के साथ काम करने लगे, और हमने अपने ब्रांड को तैयार करने के लिए काम करना शुरू किया तब हमें कुछ मुश्किलें आने लगीं। हमारे प्रोडक्ट और तकनीक का विज्ञापन देखकर लोग दूसरे क्लीनिक जाने लग गए, क्योंकि स्माइल्स उनके भी नाम में कहीं न कहीं था। तो उस कंफ्यूजन को दूर करने के लिए हमने ग्लोबल मार्केटिंग करने वाले एक इन्वेस्टर के साथ मिलकर यह तय किया कि हमें अपना एक नया नाम रखना होगा, जिसे लेकर विश्वस्तर पर हम अपनी अलग पहचान बना सकें। ताकि किसी को भी डेंटल केयर करवाना हो तो वो डेज़ी का नाम बोल पाए, जिसका फुल फाॅर्म है- डेंटल केयर मेड ईजी यानि दांतों की देखभाल को जिसने आसान बनाया। यहां हम अपने मरीजों को यह बताना चाहते हैं कि आखिर आपके साथ दांतों की देखभाल का मुद्दा क्या है? उन्हें यह सिखाना चाहते हैं कि वे अपने दांतों की स्थिति को पूरी तरह से समझ पाएं ताकि उसका सही इलाज क्या होना चाहिए, वे यह समझ सकें। डेज़ी चार लेटर्स का एक शब्द है, जिसे बोलना हर भाषा वालों के लिए आसान भी है इसलिए हमने अपने क्लीनिक का नाम बदलकर डेज़ी कर दिया।
आपका कहना है कि आप एआई से ट्रीटमेंट करते हैं। इससे आपका तात्पर्य क्या है?
दुनिया में दो ही ऐसी कंपनियां हैं, जो डेंटल केयर में टेक्नोलाॅजी का प्रयोग कर रही हैं। एशिया, खासकर भारत में तकनीक का प्रयोग डेंटल केयर के लिए करने वाली कंपनी केवल हम ही हैं। हमारी कोशिश होती है कि अपने मरीजों को पहले हम इस बारे में शिक्षित करें कि आखिर उनकी समस्या है क्या? उसमें हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का पूरा प्रयोग कर रहे हैं। मरीज हमारे प्लेटफाॅर्म पर आकर अपनी फोटो सबमिट कर सकता है। उसके बाद हम उनकी समस्या बताने में सक्षम होते हैं। उसके बाद हम उनकी समस्याओं के बारे में और उनके इलाज के बारे में हाइलाइट करके उन्हें दे देते हैं। अगर कोई बिल्कुल अलग तरह का या एस्थेटिक ट्रीटमेंट करवाना चाहता है, जैसे कि किसी को जानना है कि ट्रीटमेंट के बाद उसकी स्माइल कैसी दिखेगी तो हम उसे उसकी तस्वीर भी भेज देते हैं। ये सारी चीजें हम उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से करके भेज रहे हैं। ये टेक्नोलाॅजी प्रोपराइटी तकनीक है। इसमें हमारी ह्यूमन फर्स्ट सेव होती है। अगर कोई अपने डेंटिस्ट से रिपोर्ट बनाने के लिए कहता है तो उसे एक रिपोर्ट बनाने में एक से डेढ़ घंटा लगता है, लेकिन हमारे यहां यही काम करवाने में किसी भी डेंटिस्ट को मुश्किल से 30 सेकेंड से लेकर एक मिनट का समय लगता है। मूलतः हमारे यहां ये सारे काम एआई के जरिए होते हैं, लेकिन इसका फाइनल वेरिफिकेशन डेंटिस्ट के जरिए होता है, जो यह ध्यान रखते हैं कि इसमें मेडिकल तौर पर कोई समस्या तो नहीं है! इसके बाद उस रिपोर्ट में डाॅक्टर के हस्ताक्षर होते हैं। यह हमारे मरीजों को यह शिक्षित करने में मदद करता है कि आखिर उनकी डेंटल स्थिति क्या है? और उन्हें किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि वे अपने दांतों का अच्छी तरह से ध्यान रख सकें।
इसके बाद मरीज हमारे रिपोर्ट को देखकर या तो हमारे क्लीनिक में आते हैं या फिर हमारे डाॅक्टर्स को वे अपने घर बुला सकते हैं। हमने ग्लोबल कंपनी से पार्टनरशिप किया हुआ है, जिनके कैमरे का प्रयोग करके हम मरीजों के थ्रीडी रेकॉर्ड्स रखते हैं। वही थ्रीडी रिकाॅर्ड मरीजों को दिखाकर हम उन्हें यह समझा पाते हैं कि आखिर उनकी समस्या क्या है? फिर यह रिपोर्ट हम बेंगलुरू में मौजूद हमारे वर्ल्ड क्लास मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट्स स्थित हमारी प्लानिंग टीम को दिखाते हैं, जहां एम्स जैसे भारत के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों से पासआउट डाॅक्टर्स बैठते हैं। वे लोग इन सारी रिकाॅर्डिंग्स को ध्यान से देखते हैं और उस पर काम करते हैं। यह सब भी हमारे प्रोपराइटी टेक्नोलाॅजी के माध्यम से किया गया है, जिसमें एआई का प्रयोग किया गया है। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि किस तरह से हम अपनी योजना बनाएं ताकि विश्वस्तर पर हम मरीजों का सही से इलाज कर सकें। इसका बेहतर से बेहतर इलाज क्या हो सकता है, उसके हिसाब से हमारा ट्रीटमेंट प्लान बनता है और उसे ही इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह पूरा प्रोसेस पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से किया जाता है, जिससे इलाज बेहतर और आसानी से हो पाती है और दर्द भी कम से कम होता है। कुछ इलाज साल भर तक चलता है, उसमें कितना इंप्रूवमेंट हुआ, एआई के जरिए हम इसका भी पूरा ध्यान रखते हैं। एआई इस बात का भी ध्यान रखती है कि प्लानिंग के अनुसार ट्रीटमेंट का पूरा प्रोसिजर चल रहा है या नहीं? अगर उसमें कोई भी अंतर होता है तो वह हाइलाइट हो जाता है, जिसके बाद डाॅक्टर इस पर काम करते हैं। अब तक भारत में किसी भी कंपनी ने डेंटल केयर के लिए तकनीक का प्रयोग नहीं किया है। एशिया में भी हम ही ऐसी एकमात्र कंपनी हैं। दुनिया भर में मुश्किल से तीन या चार कंपनियां ही ऐसी हैं।
अपनी कंपनी के एक्सपर्ट्स के बारे में कुछ बताएं।
शुरुआती दौर में जब मैं अकेले काम करता था, तब मेरे पास काफी काम होता था, लेकिन आज हमारी कंपनी में 100 से ज्यादा डाॅक्टर्स हैं और सभी एक्सपर्ट्स हैं। बेसिक ट्रीटमेंट के लिए जनरल डाॅक्टर्स हैं, लेकिन अगर कुछ खास तरह की समस्या है तो उसके लिए हमारे एक्सपर्ट्स हैं। और यह हर शहर में मौजूद है। अगर आप किसी दूसरे क्लीनिक में जाते हैं तो एक ही डाॅक्टर सभी समस्याओं का इलाज करना चाहता है, जिससे अक्सर ट्रीटमेंट अच्छा नहीं हो पाता। और अगर वह किसी स्पेशलिस्ट को बुलाता है तो वह ट्रीटमेंट बहुत ज्यादा महंगा हो जाता है। क्योंकि इसमें उसका कमीशन भी बंधा होता है। ऐसे में 100 रुपये का ट्रीटमेंट करवाने में आपका 250 रुपये तक लग जाता है। हमारे यहां आपको यही फायदा है कि 50 से 60 प्रतिशत तक कम खर्च में आपको बेहतरीन इलाज मिल जाता है। हमारे यहां सभी डाॅक्टर्स पेरोल पर हैं। एआई तकनीक के कारण हमें यह मालूम होता है कि जो भी पेशेंट आ रहा है, उसके लिए कौन से स्पेशलिस्ट होने चाहिए? तो हमें यह बिल्कुल पहले विजिट से ही मालूम होता है कि जो मरीज आ रहा है, उसके लिए कौन से स्पेशलिस्ट की जरूरत है? यही वजह है कि पहले ही विजिट से मरीजों को हम कम खर्च में बेहतर इलाज देने में सक्षम होते हैं।
टियर टू और टियर थ्री सिटीज में आप कब तक पहुंचेंगे?
वैसे तो हम ज्यादातर टियर 1 सिटी में हैं, लेकिन इंदौर एक ऐसा शहर है, जो टियर टू में आता है, और हम वहां पहले से ही हैं क्योंकि हमने शुरू ही वहीं से किया था। असल में, अभी हम चाहते हैं कि टियर वन सिटीज में ही पहले अपनी ब्रांड वैल्यू बना सकें। इसके लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। काम कर रहे हैं। टियर वन शहरों में मरीज अच्छे इलाज के बदले में अच्छी फीस देने के लिए तैयार होते हैं, जिससे हमें अपने इलाज में किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती। हम चाहते हैं कि अभी दो साल बड़े शहरों में अपने काम के जरिये अपनी ब्रांड वैल्यू बनाने पर ध्यान दें। उसके बाद कुछ जरूरी बदलावों के साथ हम टियर टू और थ्री सिटीज में भी पहुंचेंगे। दरअसल, छोटे शहरों में ज्यादातर लोग मोबाइल के जरिए अपनी तस्वीरें भेजने में पूरी तरह से कंफर्टेबल नहीं होते। ऐसे में हमारी कोशिश है कि हम छोटे शहरों में कुछ ऐसे सेंटर्स भी तैयार करें, जहां बैठकर कोई अपने मोबाइल से उनकी सही-सही डिटेल्स भी हमें भेज सके। हालांकि, हम यह सब दो से ढाई साल बाद करना चाहते हैं। अभी इस पर काम चल रहा है और हम बड़े शहरों में अपनी ब्रांड वैल्यू बनाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं।
अगर कोई आपका फ्रैंचाइजी लेना चाहता है तो उसे क्या करना होगा?
हमें फ्रैंचाइजी की डिमांड दिख रही है इसलिए अगले तीन महीनों में हम एक फ्रैंचाइजी माॅडल के साथ आगे आने वाले हैं। इसमें जो लोग भी समाज के लिए कुछ अच्छा काम करना चाहते हैं, वे सभी लोग कुछ पैसे निवेश करके समाज के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं। फिलहाल मेट्रो शहरों और टियर वन सिटीज के लिए हम फ्रैंचाइजी माॅडल लाएंगे। उसके बाद कुछ समय बाद टियर टू और थ्री सिटीज के लिए भी कुछ माॅडिफिकेशंस के साथ लाॅन्च करेंगे।
हम बहुत जल्द अपना फ्रैंचाइजी माॅडल भी शुरू करना चाहते हैं क्योंकि हमें बहुत अच्छा रेस्पोंस मिल रहा है। हमारी कंपनी पिछले कुछ समय में ही काफी अच्छा ग्रो कर रही है। अब तक अपने ब्रांड की वैल्यू बनाने के लिए हमें किसी सेलिब्रिटी को रखने की जरूरत नहीं पड़ी है। यहां तक कि सोशल मीडिया में हमें पेड ऐड करने की जरूरत भी नहीं पड़ी है, आर्गेनिक के जरिये ही हमें काफी अच्छा रेस्पोंस मिल रहा है।
डेंटल क्लीनिक शुरू करने के लिए बजट क्या होना चाहिए?
एक डेंटल क्लीनिक शुरू करने के लिए लगभग 20 से 25 लाख रुपये का निवेश करना पड़ सकता है। इसके साथ ही कुछ बेसिक बातों का भी ध्यान रखना होता है। फ्रैंचाइजी पार्टनर के पास अगर जगह की उपलब्धता है तो वे हमसे जुड़ सकते हैं।
आपके फ्रैंचाइजी ऑनर बनने के लिए और किस चीज़ की जरूरत होगी?
फ्रैंचाइजी ऑनर को केवल निवेश करना होता है। इसके अलावा जो भी काम होते हैं वो हम खुद ही मैनेज करते हैं। जैसे हमारे अपने सेंटर्स चलते हैं, वैसे ही हम फ्रैंचाइजी सेंटर्स को लेकर भी सोचते हैं। कुछ डाॅक्टर्स हमारे साथ फुल टाइम होते हैं। हम कुछ सामान कोरिया से और कुछ यूएस से आयात करते हैं। ये सारे टूल्स फ्रैंचाइजी को भी मिलेंगे। उन्हें केवल निवेश करना है। इससे उन्हें एक अच्छा रिटर्न मिल जाता है। वे स्टाॅक मार्केट से भी अच्छा लाभ उठा सकते हैं।
टियर टू और थ्री सिटीज के लिए कुछ खास सोचा है?
इस बारे में हम योजना बना रहे हैं। असल में टियर वन सिटीज में लोग अच्छा उपचार चाहते हैं और इसके लिए वे अच्छा पेमेंट भी कर सकते हैं, लेकिन टियर टू और थ्री सिटीज में लोगों की मानसिकता बहुत ज्यादा पैसे खर्च करने की नहीं बन पाती। कुछ उपचार वहां के लोग अफोर्ड नहीं कर पाते। इसके अलावा वहां डेंटल फोबिया भी बहुत है। कई उपचार वे सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डेंटल फोबिया काफी होता है, और यह सिर्फ कीमत की वजह से है। मेट्रो सिटीज के मुकाबले वहां टेक्नोलाॅजी का प्रयोग तुलनात्मक रूप से कम है। हाल-फिलहाल तो हम टियर टू और थ्री सिटीज की ओर नहीं जा रहे हैं। डेढ़ से दो साल बाद हम छोटे शहरों की ओर भी आगे बढ़ेंगे। जब भी हम वहां जाएंगे, इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे कि इलाज की गुणवत्ता के साथ-साथ हम वहां पैसे की वैल्यू को भी ध्यान में रखकर अपने कदम बढ़ाएं।
आपका लक्ष्य क्या है?
भारत वैश्विक स्तर पर डेंटल हब भी बन सकता है। यहां डेंटल ट्रीटमेंट अन्य देशों के मुकाबले सस्ता है। ऐसे में बाहर से लोग हमारे यहां आकर इलाज करवाना पसंद करेंगे। हमारी टेक्नोलाॅजी वैश्विक स्तर की है और पार्टनरशिप भी विश्वस्तरीय है। हमने ऑनलाइन तरीके से फोटो समिट करके अपने डेंटल हेल्थ के बारे में जानकारी लेने का जो तरीका शुरू किया है, उसका प्रयोग यूएस में भी लोग करना चाहेंगे। अगर आप देखें तो पाएंगे कि डेंटल केयर पूरे मेडिकल केयर का केवल एक प्रतिशत है। लेकिन अगर आप डेंटल टूरिज्म की बात करें तो देश में ओवरऑल मेडिकल टूरिज्म का 10 प्रतिशत से ज्यादा डेंटल टूरिज्म से होता है। पश्चिमी देशों में जो कीमत है, वह भारत के मुकाबले 10 से 20 गुणा ज्यादा है। ऐसे में वहां से लोग आते हैं और उतने ही पैसों में इलाज कराकर भारत के कुछ शहर घूम भी लेते हैं और फिर लौट जाते हैं। कई बार तो उनके पैसे इसके बाद भी बच जाते हैं। हमारी योजना है कि लोगों का इलाज कराकर उन्हें आसपास के इलाके में मुफ्त में घूमने के मौके भी दें। असल में हमारे क्लीनिक ज्यादातर ऐसे शहरों में हैं, जहां लोग घूमने के लिए आना चाहते हैं। ऐसे में हमने इस बारे में सोचा कि क्यों न हम उनका इलाज तो करवाएं ही, उन्हें घुमाने का जिम्मा भी ले लें। इससे हमें काफी लाभ हो सकता है। वहां के मार्केट को भी इसका लाभ मिल सकता है। साथ में हमने यह भी सोचा है कि वहां जो डेंटिस्ट हैं, उनकी अच्छी ट्रेनिंग करवा कर नई-नई तकनीक से उन्हें प्रशिक्षित करें और उन्हें अपने साथ जोड़ लें। इस तरह से भारत डेंटल केयर के मामले में सर्वश्रेष्ठ स्थल बन सकता है। यह दंत चिकित्सा की दुनिया के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व की बात होगी। हमारा टारगेट यही है।