
ईजीओएस की मंजूरी मिलने के बाद लिया गया है यह निर्णय
संशोधित योजना 2023-24 से शुरू होगी और लगातार पांच वित्तीय वर्षों तक रहेगी लागू
मार्च 2020 में भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पीएलआई प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव में ऑटो कंपोनेंट्स के लिए आंशिक संशोधन किया गया। इस संशोधन के साथ ही योजना की अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई। यह निर्णय सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएस) की मंजूरी मिलने के बाद किया गया है। ईजीओएस की अनुमति के बाद ही भारी उद्योग मंत्रालय ने ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट उद्योग के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और योजना के दिशानिर्देशों में आंशिक संशोधन किया। ये संशोधन, प्रकाशन की तारीख से प्रभावी हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बदलाव का उद्देश्य योजना को स्पष्टता और लचीलापन प्रदान करना है। संशोधित योजना के तहत, प्रोत्साहन वित्तीय वर्ष 2023-24 से शुरू होकर लगातार पांच वित्तीय वर्षों तक लागू रहेगा।
प्रोत्साहन का वितरण अगले वित्तीय वर्ष 2024-25 में होगा। योजना के तहत एक अनुमोदित आवेदक लगातार पांच वित्तीय वर्षों के लिए लाभ के लिए पात्र होगा, लेकिन 31 मार्च, 2028 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष से अधिक नहीं। इसके अलावा, संशोधनों में कहा गया है कि यदि कोई अनुमोदित कंपनी पहले वर्ष की सीमा से अधिक निर्धारित बिक्री मूल्य में वृद्धि की सीमा को पूरा करने में विफल रहती है, तो उसे उस वर्ष के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। हालांकि यह अभी भी अगले वर्ष में लाभ के लिए पात्र होगा यदि यह पहले वर्ष की सीमा से 10 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि के आधार पर गणना की गई सीमा को पूरा करता है। इस प्रावधान का उद्देश्य सभी अनुमोदित कंपनियों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना और उन लोगों की सुरक्षा प्रदान करना है, जो अपने निवेश को आगे बढ़ाना पसंद करते हैं। मंत्रालय की ओर से इस बाबत बताया गया कि संशोधन में प्रोत्साहन परिव्यय को दर्शाने वाली तालिका में किया गया बदलाव भी शामिल है, जिसमें कुल सांकेतिक प्रोत्साहन राशि 25,938 करोड़ रुपये है। इसमें कहा गया है कि ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट उद्योग के लिए पीएलआई योजना और योजना के दिशानिर्देशों में इन संशोधनों से क्षेत्र को अधिक स्पष्टता और समर्थन मिलने, विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना
जब भी हम उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना की बात करते हैं, तो सबसे पहले यह जान लें कि इस योजना को शुरू करने का उद्देश्य क्या था? दरअसल इस योजना के तहत भारत में बनने वाले उत्पादों को बढ़ावा देना था ताकि दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता कम हो सके। साथ ही श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि हो सके, इस बात पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य नई तकनीकों के प्रयोग से उत्पादन को प्रोत्साहन देना और घरेलू व विदेशी दोनों ही कंपनियों को भारत में अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित या विस्तारित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। योजना के तहत कई तरह के लाभ मिलते हैं। इसमें आयात और निर्यात शुल्क पर रियायतें, कर छूट, सस्ती भूमि अधिग्रहण और नई परियोजनाओं का प्रबंधन करने वाले मुख्य निवेशकों के लिए समर्थन शामिल है।
इस योजना के कुछ अन्य उद्देश्य हैं, जो निम्नवत् हैं।
- विश्व व्यापार संगठन के दायित्वों का पालन करना और घरेलू बिक्री और निर्यात के लिए निष्पक्ष व्यवहार को बढ़ावा देना।
- उन्नत तकनीक और प्रमुख क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित करना, निर्यात को बढ़ावा देना और आर्थिक विकास में योगदान देना।
- यह योजना निर्यात किए जाने वाले उत्पादन को प्रोत्साहित करती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है और भारत के निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देती है ताकि कंपनी नई तकनीकों को अधिक से अधिक व्यवहार में ला सकें और उसके सहयोग से बेहतर प्रदर्शन कर सके।
- औद्योगिक अवसंरचना के विकास पर ध्यान देती है ताकि कंपनी अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करना या विस्तार करना हो तो वह भी सहजता से कर सकें।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर, रोजगार सृजन करके, निवेश आकर्षित करके और निर्यात को बढ़ावा देकर, देश में समग्र आर्थिक विकास और विकास में योगदान देती है।
- बेरोजगारी दर को कम करने के उद्देश्य से योजना के तहत रोजगार के अवसर पैदा करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- योजना विदेशी निवेश को आकर्षित करती है ताकि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देकर और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाकर विदेशी कंपनियों को भारत में अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।