
शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग बढ़ाने के लिए किए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
उद्देश्य है जनजातीय अनुसंधान को आगे बढ़ाना और भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) की सुरक्षा करना
आईआईटी रुड़की और आईआईटी भिलाई इन दोनों प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस साझेदारी का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान करते हुए भारतीय ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण और प्रचार को बढ़ावा देना है। इसके अलावा इसका मुख्य ध्यान पारंपरिक औषधीय पौधों पर अनुसंधान करने, जनजातीय संस्कृति अध्ययन व जनजातीय क्षेत्रों में कृषि पद्धतियां और जनजातीय आबादी के बीच वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने पर रहेगा। भारतीय संस्कृति और विरासत के बारे में युवाओं के बीच जागरूकता पैदा करने की दिशा में उठाया गया कदम यह कदम भारत सरकार के विकसित भारत 2047 के तहत कार्य करेगा।
यह साझेदारी भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) को शिक्षा प्रणाली में एकीकृत करने पर विशेष ध्यान देने के साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में बताए गए उद्देश्यों का भी समर्थन करेगी। आईकेएस प्राचीन भारत के ज्ञान को शामिल करता है, आधुनिक भारत में इसके योगदान को स्वीकार करता है और शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण के साथ ही अन्य संबंधित क्षेत्रों में भारत की भविष्य की आकांक्षाओं को समझने पर जोर देता है। यह सहयोग प्रधानमंत्री के एक भारत, श्रेष्ठ भारत के दृष्टिकोण के भी अनुरूप है। समझौते की शर्तों के तहत, दोनों संस्थान ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे, भारतीय संस्कृति और ज्ञान प्रणालियों को बढ़ावा देंगे। साथ ही सतत और ग्रामीण विकास, प्राचीन भारतीय विज्ञान, फिनटेक, स्वास्थ्य विज्ञान, कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा से संबंधित परियोजनाओं पर सहयोग करेंगे। जीवन प्रबंधन, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन प्रबंधन, भाषाओं, शांति और सुलह, संगीत, मानविकी और सामान्य हितों का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा।
दोनों ही संस्थान आपसी सहयोग के जरिए समय-समय पर सेमिनार, संगोष्ठियों, सम्मेलनों, कार्यशालाओं और अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के संयुक्त आयोजन करते रहेंगे, ताकि आईआईटी रुड़की और आईआईटी भिलाई के बीच शैक्षणिक और अनुसंधान तालमेल भी रहे और अधिक से अधिक युवाओं को भारतीय संस्कृति और ज्ञान प्रणालियों से अवगत कराया जा सके।