970*90
768
468
mobile

भारत में माध्यमिक शिक्षा

Uttara.J. Malhotra
Uttara.J. Malhotra Sep 15 2018 - 4 min read
भारत में माध्यमिक शिक्षा
सरकार डिजिटल इंडिया और शिक्षा क्षेत्र पर बहुत ज्यादा ध्यान दे रही है। इसके बावजूद शिक्षा में माध्यमिक स्तर पर कछुए की चाल से सुधार हो रहे हैं।

कड़वी सच्चाई 

सरकारी स्कूल अपने लगभग 59 प्रतिशत छात्रों को प्राथमिक स्तर पर प्रवेश देते हैं। इनमें से मुश्किल से 35 प्रतिशत ढर्रे से बच कर शिक्षा के माध्यमिक स्तर तक पहुंच पाते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत गठित किए गए डाटा इन्फॉर्मेशन फोर एजुकेशन (DISE) के अनुसार सिर्फ उच्च प्रवेश संख्या और नौवीं कक्षा तक छात्रों को कायम करने के बारे में ही सकारात्मक बात होती है। उसका परिणाम तो यही होने वाला है।

लेकिन हम शायद ही कभी ये जानने की कोशिश करते हैं कि छात्रों को शिक्षा के माध्यमिक स्तर की खाई को पार करना लगभग नामुमकिन क्यों हो गया है?

स्वाधीनता से...

शिक्षा प्रणाली के बारे में एक दुखद असलियत ये है कि संविधान को अपनाने से (1950) आज तक भारत में शिक्षा के बारे में ध्यान मुख्यतः प्रारंभिक शिक्षा पर ही रहा है। इसमें प्राथमिक शिक्षा का भी समावेश रहा है, लेकिन माध्यमिक शिक्षा को कभी उसका सही महत्व नहीं दिया गया।

यह वह समय था, जब चार महत्वपूर्ण शिक्षा सुधार समितियां पहले ही माध्यमिक स्तर की शिक्षा में आने वाली समस्याओं को दूर करने के बारे में गंभीर चिंताएं जता चुकी थी। उनमें से एक थी विख्यात ताराचंद समिति (1948), जिसने तब तक ‘जैसे थे’ अवस्था में रहे माध्यमिक शिक्षा में सुधार लाने की हिमायत की थी।

 

उन दिनों, डॉ.एस.राधाकृष्णन के नेतृत्व में नियुक्त विश्वविद्यालय समिति 1948-49 ने पहले ही वक्तव्य कर रखा था कि ‘विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश का स्तर, वर्तमान माध्यमिक परिक्षा यानी स्कूल और माध्यमिक विद्यापीठ में बारह वर्ष अध्ययन करने के बाद के स्तर के होना चाहिए।” उन्होंने टिप्पणी की है, “हमारी माध्यमिक शिक्षा हमारी शिक्षा-रचना की सबसे कमजोर कड़ी है और उसे तुरंत सुधारना जरूरी है।”

उस समय तक, बच्चों को उनके विषय चुनने की स्वाधीनता नहीं दी गई थी। पाठ्यक्रम सख्त था और उसमें क्रिएटिविटी के लिए कोई जगह नहीं थी। शिक्षा की तकनीकी बाजू से छात्रों की पहचान भी करवाई नहीं जाती थी। ये एक बहुत बड़ी कमी थी, जो विश्वविद्यालय के स्तर पर प्रवेश पाने में मुश्किल पैदा करती थी।

नरेंद्र देव समिति (1952) ने भी देश के आर्थिक विकास की खातिर सुधार सुझाए थे। दोनों समितियों का ये मत था कि माध्यमिक शिक्षा की बहुमुखी प्रणाली उचित है। इसका ये मतलब नहीं था कि एकपक्षीय माध्यमिक स्कूलों को नजरंदाज किया गया था। मतलब सिर्फ इतना था कि वे एक कदम आगे बढें। समिति ने बहु-विषय ढांचा और छात्रों की मानसिक परीक्षा तथा उसके बाद जरूरी मार्गदर्शन की भी सिफारिश की थी।

बहुमुखी शिक्षा

बहुमुखी विद्यालय के विचार का जन्म इंग्लैंड के वेल्स में 20 वीं सदी में हुआ था। भारत में भी उसे लागू किया गया। शिक्षा के सभी पहलुओं पर ध्यान देने वाला राज्य माध्यमिक विद्यालय जो कि उस क्षेत्र के सभी लोगों के लिए समान रूप से हो, यह वह संकल्पना थी।

10+2 और विश्वविद्यालय स्तर से निकलने वाले छात्रों में बढ़ रहे विभाजन को देखते हुए लगता है कि बहुमुखी विद्यालयों ने समय के साथ बहुत ज्यादा महत्व हासिल किया। शैक्षणिक दृष्टि से बहुमुखी विद्यालयों के बहुत सारे फायदे थे। एक तो यह कि वो प्रतिभा के अनुसार प्रशिक्षण में मदद करने पर ध्यान दे सकते थे। यह ताराचंद समिति की उस सिफारिश से मेल खा रहा था, जिसमें बच्चों को उनके पसंद के विषय का ज्ञान विकसित करने के लिए चार प्रमुख वर्गों में से एक चुनने का विकल्प दिया गया था। ये चार वर्ग थे: 1) साहित्यिक 2) वैज्ञानिक 3) रचनात्मक 4) सौंदर्यशास्त्रीय।

इसके अलावा, परीक्षाएं भी प्राथमिक विद्यालय परीक्षा पद्धति की किसी दखलअंदाजी के बिना विषय-धारा के अनुसार होगी।

आज की माध्यमिक शिक्षा

अंतर्राष्ट्रीय स्कूलिंग प्रणाली के आने से निजी स्कूलों में माध्यमिक शिक्षा क्रांतिकारी बदलाव के दौर से गुजर रही है। इन्टरनेशनल बैचलरेट प्रोग्राम और/ या कैम्ब्रिज इन्टरनेशनल एग्जामिनेशन जैसे मूल्यांकन के अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम्स ने शिक्षा को सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंचा दिया है। ये CBSE और ICSE से जुड़े स्कूलों के अलावा हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि 10वीं कक्षा में उत्तीर्ण किसी भी छात्र को कम गुणों के आधार पर 10+2 में प्रवेश के लिए मनाही नहीं की जा सकती है। इस फैसले से (विशेषतः दिल्ली के) बच्चों का फायदा होने वाला है। बालक कोई दूसरी धारा चुन सकता है, लेकिन उस पर दरवाजे बंद नहीं किए जा सकते।

सरकारी स्तर पर माध्यमिक शिक्षा अब भी सुधार के मामले में पिछ्ड़ी हुई है। 1994 में शुरु किया गया जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (DPEP) सिर्फ प्राथमिक स्तर की हद तक ही रहा है। उन्होंने अब ऊपरी प्राथमिक स्तर को अपने घेरे में लिया है। ये सिर्फ 52 जिलों में पहले चरण की प्राथमिक अवस्था में है। बिहार शिक्षा परियोजना और विश्व बैंक उत्तर प्रदेश मूलभूत शिक्षा परियोजना भी अब तक पूरी प्राथमिक शिक्षा को एक ही इकाई मान रहे थे।

लेकिन अच्छी खबर ये है कि बिहार सरकार ने अब माध्यमिक शिक्षा के लिए टास्क फोर्स गठित किया है।   

Subscribe Newsletter
Submit your email address to receive the latest updates on news & host of opportunities
Entrepreneur Magazine

For hassle free instant subscription, just give your number and email id and our customer care agent will get in touch with you

or Click here to Subscribe Online

You May Also like

Newsletter Signup

Share your email address to get latest update from the industry