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भारत में कानूनी शिक्षा क्षेत्र में इन चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना

Sneha Santra
Sneha Santra Feb 09 2019 - 3 min read
भारत में कानूनी शिक्षा क्षेत्र में इन चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना
कानून की शिक्षा या जागरूकता के कारण वकीलों के चरित्र को 'सामाजिक इंजीनियर' माना जाता है।

कानूनी शिक्षा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कानूनी शिक्षा की क्वालिटी बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि देश के बड़े कॉलेजों की जगह पर हजारों की तादात में छोटे शहरों और मुफस्सिल जगहों के कानूनी शिक्षा के कॉलेजों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।इन शहरों के लॉ कॉलेजों के पास छात्रों को देने के लिए संपूर्ण ढांचा और ट्रेनिंग की क्षमता उतनी नहीं होती जितनी देश के बड़े लॉ स्कूलों और जाने माने प्राइवेट लॉ कॉलेजों में होती है। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे ही छोटे शहरों के लॉ कॉलेज के विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाए।यहां पर हम भारत के कानूनी शिक्षा के कुछ बड़ी चुनौतियों की बात कर रहे हैं।

मूट कोर्ट
कानूनी शिक्षा के छात्रों को व्यवहारिक अनुभव देने के लिए मूट कोर्ट का अनुभव करना बहुत ही आवश्यक है। मूट कोर्ट में भागीदारी की सीमा के कारण कई छात्र अवसर न मिलने की वजह से बहुत ही पीछे रह जाते है। कई कॉलेजों के पास अपने मूट कोर्ट टीम को सलाह देने के लिए कोई निर्देश प्रणाली नहीं है जिस कारण यह छात्र के जीवन में स्थायी योगदान नहीं दे पाता है। आजकल छात्र अंतर्राष्ट्रीय मूट प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं। परिणामस्वरूप अपने छात्रों को ट्रेनिंग देकर इस स्तर का तैयार करना कि वे विकसित देशों के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़े हो सकें, इन लॉ कॉलेजों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

इंटर्नशिप

किसी भी क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए इंटर्नशिप जरूरी है। ये छात्रों को बहुत कुछ नया देखने और प्रोफेशनल कुशलता को सीखने में मदद करता है। हालांकि बहुत से वकील समाज में अपना योगदान देने के लिए भविष्य के वकीलों को शिक्षा और उन्हें ग्रूम करने में योगदान देना चाहते हैं।लेकिन उनमें से ज्यादातर उन्हें इंटर्न के तौर पर नियुक्त करना नहीं चाहते हैं। इसी कारण बहुत से छात्रों को आधारभूत बातें सीखने, रिसर्च और प्रस्तुति कौशलता में कमी हो जाती है। प्राथमिक प्रोफेशनल कुशलता और विषय ज्ञान के बिना एक कानूनी पेशेवर के लिए उसका पेशा एक बोझा बन कर रह जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि छात्रों के बाहर जाकर इंटर्नशिप करने से पहले कॉलेजों में कुछ आधारभूत कौशलता को शामिल किया जाए।

तकनीक

तकनीकी विकास के कारण शिक्षा के क्षेत्र की कायापलट हो गई है। तकनीक का प्रयोग खासतौर पर छोटे शहरों के कॉलेजें में बहुत ही कम है।इसलिए यह कानूनी शिक्षा की क्वालिटी पूरी तरह से प्रभावित करती है। एडवांस तकनीक के प्रयोग की अनुपस्थिति भारत के कानूनी शिक्षा का एक सबसे चुनौती है। यह आवश्यक है कि पढ़ाने की तकनीक में एडवांस उपकरण और तकनीकों का प्रयोग जैसे एमएस वर्ड, एक्सेल, टूल्स जैसे ग्रामर्ली, गूगूल कीप, मीटिंग और रिमांइडर के लिए गूगल कैलंडर आदि के प्रयोग करने की एंडवास कुशलता जरूरी है। इससे ये छात्रों के लिए ज्यादा संवादमूलक और दिलचस्प बन सकता है।

शोधकर्ताओं की कमी

भारत के कानूनी शिक्षा का दूसरी चुनौती है कानून में शोधकर्ताओं की कमी और ऐसे रिसर्च के महत्व की कमी और मौजूदा लॉ स्कूलों में प्रकाशन की कमी है। इससे बौद्धिक रूप से विकास करने वाले वातावरण की अनुपस्थिति का जन्म होता है। रिसर्च बहुत से कार्यों में प्रभावशाली ढंग से मदद कर सकता है जैसे शिक्षण और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इससे कानून और न्याय संबंधी बहुत सी चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। अगर कोई दुनिया के सबसे बेहतरीन लॉ स्कूलों के फैक्ल्टी प्रोफाइल पर नजर डालें तो वह यही पाएगा कि वहां पर रिसर्च और प्रकाशनों को अकादमिक में बहुत ही महत्व दिया जाता है। लेकिन भारत में अन्य विषयों की तरह कानूनी क्षेत्र में की जाने वाले रिसर्च को महत्व नहीं दिया जाता।

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