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भारत की मौजूदा शिक्षा प्रणाली

Nibedita Mohanta
Nibedita Mohanta Sep 10 2018 - 3 min read
भारत की मौजूदा शिक्षा प्रणाली
वित्त वर्ष 2017-18 में शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट में रूपये 79,685.95 करोड़ (11.952 बिलियन अमरीकी डॉलर) तय किए गए हैं जो वर्ष 2016-17 के रूपये 72,934 करोड़ (10.859 बिलियन अमरीकी डॉलर) से 9.9 प्रतिशत ज्यादा है।

जैसा कि मेलकॉम एक्स ने सही कहा है, ‘शिक्षा, भविष्य के लिए हमारा पासपोर्ट है, क्योंकि कल उन्हीं का है जो आज उसके लिए तैयारी करते हैं।’

भारत की शिक्षा प्रणाली में सबसे उत्तम बात यह है कि यह शिक्षा के शुरूआती चरणों में सभी विषयों की मूलभूत बातों को समान महत्व देते हुए बच्चे की शिक्षा की नींव तैयार करती है।

वर्तमान में, उच्च शिक्षा क्षेत्र में रूपये 46,200 करोड् (6.93 बिलियन अमरीकी डॉलर) का व्यय हो रहा है और अगले दस सालों में इसकी 18 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से वृद्धि होने के साथ रूपये 232500 करोड़ (34.87 बिलियन अमरीकी डॉलर) तक पहुंचने की उम्मीद हैं।

वित्त वर्ष 2017-18 में शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट में रूपये 79,685.95 करोड़ (11.952 बिलियन अमरीकी डॉलर) तय किए गए हैं, जो वर्ष 2016-17 के रूपये 72,934 करोड़ (10.859 बिलियन अमरीकी डॉलर) से 9.9 प्रतिशत ज्यादा है।

मौजूदा शिक्षा प्रणाली एक या दो दशक पहले जैसी थी उससे काफी बदल गई है। यहाँ मौजूदा शिक्षा प्रणाली की कुछ मुख्य विशेषताएं बताई जा रही हैं:

तकनीक

हमारे जीवन में और शिक्षा प्रणाली में तकनीक के हस्तक्षेप ने भारत में शिक्षा प्रणाली का चेहरा बदल दिया है।

आज 3 से 4 वर्ष के बच्चे भी आई-पैड्स, स्मार्टफोन्स, गैजेट्स और कम्प्यूटर का आसानी से इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि समय के साथ दिमाग ने घटित हुए तकनीकी बदलावों को अपनाना शुरू कर दिया है।

इंटरनेट कनेकशन जैसी विभिन्न तकनीकों के शिक्षा में प्रयोग के बाद दुनिया भर में छात्रों और शिक्षकों में बातचीत होना आसान हो गया है। इंटरनेट कनेक्शन की मदद से दुनिया छोटी हो गई है, जो शुरूआती वर्षों में नहीं था।

असीमित विकल्प

पहले कैरियर विकल्प बहुत सीमित थे, लेकिन अब बच्चों के लिए अपने पसंद के विषय के बारे में ज्यादा जानने के लिए विस्तृत क्षेत्र उपलब्ध है।

इसके साथ ही विभिन्नता की सराहना की जाती है और सफलता उनके कदम चूमती है, जो वास्तव में कड़ी मेहनत करते हैं और अपने काम को ईमानदारी और समर्पण के साथ करते हैं, तो वर्तमान परिदृश्य में अवसरों के समुद्र ने उन लोगों को गले लगाने के लिए अपनी बांहे फैला दी है, जो अपनी प्रतिभा की पहचान करने में सक्षम हो पाए हैं।

शिक्षा की लागत

शुरूआती सालों की तुलना में शिक्षा की लागत में निश्चित ही कई गुना की बढ़ोतरी हुई है, चाहे वह सरकारी विद्यालय हो या निजी विद्यालय हो, बच्चों की बेहतरी के लिए निरंतर धन व्यय किया जा रहा है।

इसके अलावा माता-पिता भी उत्तर-काल के जीवन में लाभ का आनंद लेने के लिए बच्चे की शिक्षा में स्वेच्छा से निवेश कर रहे हैं। यदि आसान शब्दों में कहा जाए तो लोगों को यह समझ में आ गया है कि ‘शिक्षा की सर्वोत्तम निवेश है।’

अंतर्राष्ट्रीय निजी विद्यालयों की शुरूआत

निजी क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय विद्यालयों की शुरूआत ने शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है।

इसने बाहरी दुनिया में प्रवेश करने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार होने के लिए द्वार खोले हैं।

अंतर्राष्ट्रीय विद्यालयों में होने से आपको अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करने के लिए आवश्यक आत्मविश्वास और उचित अनुभव प्राप्त में मदद मिलती है।

जैसा कि प्लेटो ने कहा, ‘बच्चे को दबाव डालकर या कठोरता से सख्ती से पढ़ने की आदत न डालें, बल्कि उन्हें जिस चीज में मजा आता है उसके माध्यम से उन्हें उस ओर निर्देशित करें, ताकि आप बेहतर तरीके से और सटीकता से हर बच्चे की विशिष्ट बुद्धिमत्ता के बारे में जान सकें।’

भारत में शिक्षा प्रणाली ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन साथ ही इसने ऐेसे हीरे पैदा किए हैं, जो दुनिया भर में भारत का परचम लहरा रहे हैं।

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